Ground Report: MP में जंगल से बेघर, बैंक से बेआसरा विस्थापित परिवारों का दर्द; बेटी की शादी का सपना टूटा, 2 हजार निकाले, 2 लाख गायब; FD का बोल बीमा पॉलिसी कर दी



दर्द और विस्थापन: वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व के प्रभावित परिवारों की कहानी वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व के जंगलों से विस्थापित खापा और मुहली गांव के परिवारों का दर्द बेहद गहरा…

Ground Report: MP में जंगल से बेघर, बैंक से बेआसरा विस्थापित परिवारों का दर्द; बेटी की शादी का सपना टूटा, 2 हजार निकाले, 2 लाख गायब; FD का बोल बीमा पॉलिसी कर दी

दर्द और विस्थापन: वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व के प्रभावित परिवारों की कहानी

वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व के जंगलों से विस्थापित खापा और मुहली गांव के परिवारों का दर्द बेहद गहरा है। इन परिवारों का आरोप है कि उन्हें विस्थापन के दौरान जो मुआवजा मिला था, उसकी राशि अचानक उनके बैंक खातों से गायब हो गई है। विस्थापित लोग यह भी बता रहे हैं कि उनके साथ धोखाधड़ी की गई है, क्योंकि उन्हें बताया गया था कि मुआवजे की राशि से एफडी बनवाकर बीमा पॉलिसी कराई गई है।

  • प्रेमसिंह आदिवासी का कहना है, “मुआवजे के 12 लाख में से 7 लाख गायब हो गए। मैं अनपढ़ हूं, सब लुट गया। बेटियों का क्या होगा, कोई सहारा नहीं है।”
  • नर्मदाबाई ने कहा, “विस्थापित होकर बर्बाद हो गए। मुआवजे के पैसे बेटियों की शादी के लिए रखे थे, वो भी चले गए। अब कैसे शादी करेंगे?”

भास्कर की टीम ने इन विस्थापित परिवारों से बातचीत की और उनकी दयनीय स्थिति को समझने का प्रयास किया।

विस्थापन की प्रक्रिया और मुआवजा राशि का मुद्दा

वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व के अंतर्गत 93 गांवों को हटाने की प्रक्रिया चल रही है, और अब तक 44 गांवों को विस्थापित किया जा चुका है, जिनमें खापा और मुहली शामिल हैं। यह प्रक्रिया वर्ष 2014 से शुरू हुई थी। पहले प्रति यूनिट मुआवजा 10 लाख रुपए था, जिसे बढ़ाकर 15 लाख रुपए प्रति यूनिट किया गया है।

विस्थापन के दौरान एचडीएफसी बैंक शाखा रहली में बैंक खाते खुलवाए गए थे, जिनमें मुआवजे की राशि जमा की गई थी। लेकिन हाल ही में, बैंक कर्मचारियों पर आरोप है कि उन्होंने विस्थापितों की अनुमति के बिना बीमा पॉलिसी बना दी और खाली चेक के माध्यम से पैसे निकाल लिए। अब ये परिवार चिंतित हैं और अपने पैसे वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

विस्थापितों का जीवन और उनकी चिंताएँ

विस्थापित परिवारों ने अपने गांवों को छोड़कर अन्य स्थानों पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनमें से कुछ गढ़ाकोटा में और कुछ मुर्गा दरारिया में झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। मुआवजे की राशि को उन्होंने सुरक्षित मानते हुए अपने बैंक खातों में रखा था, लेकिन जब उन्हें इन पैसों की जरूरत पड़ी, तो पता चला कि उनके खातों में पैसे नहीं हैं। अब वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

राजकुमार वासुदेव ने बताया कि बैंक के कर्मचारी ने उनसे दो खाली चेक लिए थे, जिनमें से एक का इस्तेमाल करके 20,000 रुपए निकाले गए थे, जबकि दूसरा चेक अपने पास रख लिया गया। वासुदेव ने कहा, “मैं अनपढ़ हूं और गढ़ाकोटा बैंक कभी नहीं गया। अब बैंक वाले मुझे घुमा रहे हैं।”

बैंक की कार्रवाई और प्रशासन की स्थिति

रहली एसडीएम कुलदीप पाराशर ने बताया कि उन्हें मामले की शिकायत मिली है। उन्होंने बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों से बात की है और एक टीम गठित की गई है जो जांच कर रही है। जांच में यह देखा जा रहा है कि खातों में जमा राशि किन परिस्थितियों में और कैसे निकाली गई।

इस बीच, एचडीएफसी बैंक शाखा के मैनेजर विवेक दुबे ने मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि इसके बारे में जानकारी कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन ऋषिकेश से मिलेगी। हालांकि, जब उनसे संपर्क किया गया, तो उन्होंने भी मामले के बारे में जानकारी नहीं होने की बात कही।

विस्थापित परिवारों की चिंताओं का समाधान जरूरी

विस्थापित परिवारों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। उनके पास न तो स्थायी निवास है और न ही उनकी आर्थिक स्थिति ठीक है। मुआवजे की राशि का गायब होना उनके लिए और भी अधिक कठिनाइयाँ पैदा कर रहा है। प्रशासन और बैंक की ओर से उचित जांच और कार्रवाई की आवश्यकता है ताकि इन परिवारों को न्याय मिल सके और उनकी समस्याओं का समाधान हो सके।

यह मामला केवल एक बैंक धोखाधड़ी का नहीं, बल्कि हजारों लोगों के जीवन में आए संकट का प्रतीक है। विस्थापित परिवारों के दर्द को समझना और उनकी मदद करना हमारी जिम्मेदारी है।

लेखक –

Recent Posts