Certificate: यूपी में बिहार के स्वतंत्रता सेनानी का मान्यता नहीं, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की



इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: बिहार के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित प्रमाणपत्र की मान्यता इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि बिहार राज्य में…

Certificate: यूपी में बिहार के स्वतंत्रता सेनानी का मान्यता नहीं, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: बिहार के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित प्रमाणपत्र की मान्यता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि बिहार राज्य में जारी किया गया स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित प्रमाणपत्र उत्तर प्रदेश में मान्य नहीं होगा। यह निर्णय न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने डॉ. रौशन कुमार सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रमाणपत्र केवल उसी राज्य के लिए मान्य है जहाँ इसे जारी किया गया है।

डॉ. रौशन कुमार सिंह, जो कि बिहार राज्य के निवासी हैं, ने उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग की परीक्षा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रित श्रेणी के तहत भाग लिया था। उनके पास बिहार से प्राप्त प्रमाणपत्र था। जब उन्हें 25 मार्च 2023 को नियुक्ति पत्र जारी किया गया, तब उन्होंने नेहरू महाविद्यालय, ललितपुर में कार्यभार ग्रहण कर लिया था। हालाँकि, इस नियुक्ति के बाद मामला विवाद में आ गया।

प्रमाण पत्र का विवाद और आयोग की कार्रवाई

उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग ने इस मामले में एक नोटिस जारी किया, जिसमें प्रमाण पत्र की वैधता को स्पष्ट करने के लिए सुनवाई की गई। इसके परिणामस्वरूप, 03 जुलाई 2025 को याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी और चयन को रद्द कर दिया गया। इस निर्णय के बाद डॉ. रौशन कुमार सिंह ने हाईकोर्ट में अपील की।

हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी दलील में कहा कि उनका प्रमाण पत्र वास्तविक है और केवल बिहार का निवासी होने के कारण उनकी नियुक्ति को रद्द नहीं किया जा सकता है। वहीं, आयोग के वकील ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिनियम, 1993 का हवाला देते हुए बताया कि इस अधिनियम के तहत आरक्षण का लाभ केवल उत्तर प्रदेश राज्य के अधिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ही दिया जा सकता है।

आयोग और हाईकोर्ट का दृष्टिकोण

इस मामले ने यह स्पष्ट किया है कि विभिन्न राज्यों में जारी किए गए प्रमाणपत्रों की मान्यता उस राज्य की सीमाओं के भीतर ही होगी। न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर कोई व्यक्ति एक राज्य का निवासी है, तो उसे उसी राज्य के नियमों और कानूनों के अनुसार ही लाभ मिलना चाहिए। यह निर्णय न केवल डॉ. रौशन कुमार सिंह के लिए बल्कि अन्य ऐसे उम्मीदवारों के लिए भी मार्गदर्शक साबित होगा जो विभिन्न राज्यों में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के आश्रित प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी के लिए आवेदन करते हैं।

निष्कर्ष

इस प्रकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित प्रमाणपत्रों की वैधता और उपयोगिता पर एक महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है। न्यायालय का यह स्पष्ट संकेत है कि राज्य के नियमों का पालन करना अनिवार्य है और किसी भी तरह की अनियमितता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसे मामलों में सही जानकारी और अपने अधिकारों का सही उपयोग करना आवश्यक है ताकि भविष्य में इस तरह की समस्याओं का सामना न करना पड़े।

इस फैसले ने यह भी दर्शाया है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति देश का सम्मान और उनकी विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता है, लेकिन यह सम्मान और लाभ उन नियमों के अनुसार होना चाहिए जो कि राज्य के कानूनों में निर्धारित हैं।

इस मामले में हाईकोर्ट के निर्णय ने न केवल न्यायालय की भूमिका को स्पष्ट किया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि कानून सभी के लिए समान है और किसी को भी विशेषाधिकार नहीं दिया जा सकता।

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