इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा मामले में मजिस्ट्रेट से मांगा स्पष्टीकरण
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा मामले में न्यायिक लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए वाराणसी के संबंधित मजिस्ट्रेट और पुनरीक्षण न्यायालय से स्पष्टीकरण मांगा है। यह निर्णय न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर द्वारा रोशनी वर्मा की याचिका पर सुनवाई के बाद लिया गया। कोर्ट ने यह चिंताजनक पाया कि सर्वोच्च न्यायालय और इस न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद मामले में उचित कार्रवाई नहीं की गई।
मामले का संक्षिप्त विवरण
मामले की जानकारी के अनुसार, याची रोशनी वर्मा ने 6 नवंबर 2018 को वाराणसी में न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत परिवाद दाखिल किया था। इसके बाद लगभग छह महीने बाद ही पति को नोटिस तामील किया गया। पति की अनुपस्थिति के कारण ट्रायल कोर्ट ने एकपक्षीय कार्यवाही आगे बढ़ाई। लगभग दो साल और दो महीने बाद पति अदालत में उपस्थित हुआ, जिसके बाद ट्रायल कोर्ट ने याची पत्नी को 15 हजार रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया।
हालांकि, याची के पति ने इस आदेश को पुनरीक्षण न्यायालय में चुनौती दी, जिसके परिणामस्वरूप पुनरीक्षण न्यायालय ने भरण-पोषण की राशि को घटाकर 10 हजार रुपये प्रति माह कर दिया। इस निर्णय के खिलाफ याची ने हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की।
हाईकोर्ट का निर्णय और भरण-पोषण की स्थिति
हाईकोर्ट ने पति के रेलवे सेक्शन इंजीनियर के पद पर कार्यरत होने और प्रति माह एक लाख 10 हजार रुपये का वेतन प्राप्त करने के तथ्यों पर ध्यान देते हुए अंतरिम भरण-पोषण की राशि को फिर से 15 हजार रुपये प्रति माह बहाल कर दिया। यह निर्णय याची के अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्यों के आधार पर लिया गया था।
याची के अधिवक्ता ने यह भी बताया कि इस मामले की कार्यवाही 2018 से लंबित होने के बावजूद याची को अब तक भरण-पोषण का एक पैसा भी नहीं मिला है। वे यह भी जानकारी दी कि याची किसी वित्तीय सहायता के बिना बेहद कठिनाइयों का सामना कर रही हैं। इसके अलावा, उन्होंने बताया कि याची का पति भारतीय रेलवे में इंजीनियर के पद पर कार्यरत है और पर्याप्त वेतन अर्जित कर रहा है, फिर भी उसने याची को कोई भरण-पोषण नहीं दिया है, जिसके कारण चार लाख 55 हजार रुपये का बकाया हो गया है।
न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
यह मामला न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता की ओर इशारा करता है। घरेलू हिंसा के मामलों में समय पर न्याय मिलना बेहद जरूरी है, ताकि पीड़ितों को सही समय पर वित्तीय सहायता मिल सके। न्यायालयों की प्रक्रियाओं में सुधार और त्वरित सुनवाई की व्यवस्था सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि ऐसे मामलों में न्याय की प्रक्रिया में देरी न हो।
इस प्रकार के मामलों में न्यायिक लापरवाहियों के प्रति गंभीरता से ध्यान देना आवश्यक है, ताकि महिलाओं को उनके अधिकारों की रक्षा मिल सके और उन्हें न्यायिक प्रणाली पर भरोसा हो। यह निर्णय उन सभी मामलों के लिए एक उदाहरण है जहां न्यायालयों को अधिक सक्रिय और संवेदनशील होना चाहिए।
अंत में, इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह कदम न केवल याची के लिए बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है, जो घरेलू हिंसा के शिकार हैं। यदि न्यायालय समय पर और प्रभावी तरीके से कार्य करेगा, तो निश्चित रूप से समाज में बदलाव आएगा और पीड़ितों को न्याय मिल सकेगा।