Video: पीएम मोदी पर विवादित वीडियो, जमानत मिली जावेद को



इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जावेद को दी सशर्त जमानत इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट करने के आरोप…

Video: पीएम मोदी पर विवादित वीडियो, जमानत मिली जावेद को

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जावेद को दी सशर्त जमानत

इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट करने के आरोप में जेल में बंद मेरठ निवासी जावेद को सशर्त जमानत प्रदान की है। जावेद 11 जून 2025 से जेल में है और उसके खिलाफ मेरठ के जानी थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए जमानत देने का निर्णय लिया।

वीडियो के विवादास्पद आरोप

जावेद पर आरोप है कि उसने वाट्सएप पर एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने पाकिस्तानी समकक्ष से युद्ध करने के लिए कह रहे हैं। इस वीडियो में दावा किया गया है कि दोनों देशों की जनता को पांच वर्षों तक चुप रहने के लिए कहा गया था। वीडियो में ऑडियो के अनुसार, दोनों नेता आपस में बात कर रहे थे कि जनता उनसे खुश नहीं है और उन्हें उनके पदों से हटाना चाहती है।

कोर्ट की सुनवाई और निर्णय

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद पाया कि अपलोड किया गया वीडियो भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 के तहत नहीं आता है, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए लागू होती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि पुलिस इस मामले में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी है, जिसके कारण जावेद जमानत पर रिहा होने का हकदार है।

रिहाई की शर्तें

कोर्ट ने जमानत देते समय कुछ महत्वपूर्ण शर्तें भी लगाई हैं। जावेद को निर्देश दिया गया है कि वह जांच में पूर्ण सहयोग करेगा। इसके साथ ही, उसे सोशल मीडिया पर कोई आपत्तिजनक पोस्ट अपलोड करने से भी रोका गया है। यदि वह किसी भी प्रकार की आपराधिक गतिविधि में शामिल होता है या इन शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसकी जमानत रद्द कर दी जाएगी।

समाज पर इसका प्रभाव

यह मामला न केवल जावेद के लिए बल्कि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस तरह के मामलों में स्वतंत्रता की सीमाएं और जिम्मेदारियों को समझना आवश्यक है। जमानत का यह निर्णय एक संकेत है कि न्यायालय स्वतंत्रता के अधिकारों को ध्यान में रखता है, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी भी प्रकार की आपत्तिजनक गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

अंतिम शब्द

इस तरह के मामलों के परिणाम समाज में अराजकता या अस्थिरता पैदा कर सकते हैं। इसलिए, सभी नागरिकों को यह समझना चाहिए कि सोशल मीडिया पर क्या साझा किया जा रहा है। यह निर्णय एक बार फिर से यह साबित करता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था किसी भी प्रकार की गलतफहमी को दूर करने के लिए तत्पर है, और वह स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखती है।

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