MP News: Fees के नाम पर बेरोजगारों से 15 करोड़ वसूलने की तैयारी, पुलिस भर्ती में 200 रुपए प्रति कैंडिडेट ले रही पुलिस



मध्यप्रदेश पुलिस भर्ती में नया शुल्क: बेरोजगार युवाओं पर बढ़ा बोझ मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे लाखों बेरोजगार युवाओं के लिए एक नई समस्या सामने आई है।…

मध्यप्रदेश पुलिस भर्ती में नया शुल्क: बेरोजगार युवाओं पर बढ़ा बोझ

मध्यप्रदेश में सरकारी नौकरी की तलाश कर रहे लाखों बेरोजगार युवाओं के लिए एक नई समस्या सामने आई है। प्रदेश में पहली बार पुलिस आरक्षक भर्ती प्रक्रिया के तहत लिखित परीक्षा के साथ-साथ फिजिकल टेस्ट के लिए भी **200 रुपये** का अलग शुल्क लिया जाएगा। यह निर्णय उन सभी अभ्यर्थियों पर लागू होगा जो फिजिकल टेस्ट के लिए आवेदन कर रहे हैं, चाहे वे चयनित हों या न हों। इस बार पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा में **10 लाख** युवाओं के आवेदन करने की उम्मीद है, जिससे पुलिस विभाग को लगभग **15 करोड़ रुपये** की अतिरिक्त आय होने की संभावना है।

युवाओं में इस नई व्यवस्था के खिलाफ नाराजगी देखी जा रही है। उनका सवाल है कि पिछले वर्षों में फिजिकल टेस्ट के लिए शुल्क क्यों नहीं लिया गया और अब यह कदम क्यों उठाया गया है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फिजिकल टेस्ट के लिए तकनीकी उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जिसके चलते यह अतिरिक्त शुल्क लिया जा रहा है। आइए इस पूरे मामले की गहराई में जाते हैं।

पुलिस आरक्षक भर्ती में दोहरी फीस का विवरण

मध्यप्रदेश कर्मचारी चयन मंडल (ESB) द्वारा हाल ही में **7,500** कॉन्स्टेबल पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया है। आवेदन प्रक्रिया **15 सितंबर** से शुरू हुई थी, और अब इसे **6 अक्टूबर** तक बढ़ा दिया गया है। जब अभ्यर्थियों ने आवेदन करना शुरू किया, तो उन्हें दो अलग-अलग शुल्कों का भुगतान करना पड़ा, जिससे वे हैरान रह गए।

  • ESB परीक्षा शुल्क: सामान्य वर्ग के लिए **500 रुपये** और आरक्षित वर्ग के लिए **250 रुपये**।
  • पुलिस विभागीय परीक्षा शुल्क: सामान्य वर्ग के लिए **200 रुपये** और आरक्षित वर्ग के लिए **100 रुपये**।

इस विभागीय परीक्षा शुल्क का उद्देश्य फिजिकल टेस्ट के लिए शुल्क वसूलना है, जबकि पहले कभी भी शारीरिक परीक्षा के लिए कोई शुल्क नहीं लिया गया था।

पुलिस भर्ती के नियम और शुल्क की वास्तविकता

पुलिस भर्ती के नियमों के अनुसार, लिखित परीक्षा में प्रदर्शन के आधार पर कुल पदों के लगभग **5 गुना** उम्मीदवारों को फिजिकल टेस्ट के लिए बुलाया जाता है। इस हिसाब से, **7,500** पदों के लिए लगभग **35,000** अभ्यर्थियों का चयन होगा। लेकिन विभाग का तर्क है कि यह शुल्क केवल इन **35,000** उम्मीदवारों से नहीं, बल्कि अनुमानित **10 लाख** आवेदकों से लिया जाएगा।

यदि सामान्य और आरक्षित वर्ग के आवेदकों की संख्या आधी-आधी मान ली जाए, तो इस शुल्क से होने वाली कुल वसूली का आंकड़ा **15 करोड़ रुपये** के पार पहुंच सकता है। यह नई व्यवस्था केवल कॉन्स्टेबल भर्ती तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि **500** पदों की सब-इंस्पेक्टर भर्ती में भी इसी तरह का विभागीय परीक्षा शुल्क वसूला जाएगा।

युवाओं की प्रतिक्रियाएं और विशेषज्ञों की राय

इस नई फीस ने उन लाखों युवाओं की कमर तोड़ दी है जो छोटे शहरों और गांवों से आकर बड़े शहरों में रहकर तैयारी करते हैं। एक अभ्यर्थी बलराम पाटिल कहते हैं कि “हम लोग बाहर से आते हैं, रूम का किराया, खाना-पानी, लाइब्रेरी का खर्च पहले से ही बहुत होता है।” वहीं, अन्य अभ्यर्थियों का कहना है कि अगर यह सिस्टम चल निकला, तो अन्य विभागों में भी फिजिकल टेस्ट के लिए शुल्क वसूला जाएगा।

छात्रों के लिए यह एक गंभीर समस्या है। प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी कराने वाले नितिन लौवंशी का कहना है कि “यह विडंबना है, जब मुख्यमंत्री परीक्षा फीस में राहत देने की घोषणा कर रहे हैं, तब पुलिस विभाग इस तरह का नया शुल्क वसूल रहा है।” यह स्पष्ट है कि छात्रों पर यह दोहरा बोझ डालने वाला कदम उनके भविष्य के लिए चिंताजनक है।

अधिकारियों का स्पष्टीकरण और वास्तविकता

दैनिक भास्कर ने इस मुद्दे पर पुलिस विभाग के चयन एवं भर्ती शाखा के एडीजी मोहम्मद शाहिद अबसार से बातचीत की। जब उनसे पूछा गया कि फिजिकल टेस्ट के लिए अलग से फीस क्यों ली जा रही है, तो उन्होंने कहा, “यह शुल्क तकनीक का खर्च है।” उनका कहना था कि दौड़ने वाले अभ्यर्थियों की मार्किंग चिप से की जाती है, जिसके लिए यह शुल्क लिया जा रहा है।

हालांकि, जब इन दावों की जांच की गई, तो पता चला कि 2023 में भी शारीरिक परीक्षा के लिए कोई शुल्क नहीं लिया गया था। तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि RF चिप की तकनीक महंगी नहीं है, और इसके लिए वसूली जाने वाली राशि **15 करोड़ रुपये** की तुलना में बहुत कम है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि मध्यप्रदेश में पुलिस भर्ती प्रक्रिया में नया शुल्क वसूलने का निर्णय लाखों बेरोजगार युवाओं के लिए एक बड़ा बोझ बन गया है। सरकार को इस मामले में उचित विचार-विमर्श कर, युवाओं की समस्याओं को समझने की आवश्यकता है। यदि यह शुल्क वसूली बंद नहीं की गई, तो इससे अनगिनत छात्रों पर आर्थिक दबाव बढ़ेगा और उनका भविष्य अंधकार में चला जाएगा।

अंत में, यह स्पष्ट है कि एक ओर जहां सरकारी नीतियों का उद्देश्य युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करना है, वहीं दूसरी ओर ऐसी नीतियों के माध्यम से आर्थिक बोझ डालना युवाओं के लिए चिंता का विषय बन गया है।

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