Uttar Pradesh News: Recovery के मुद्दे पर हाईकोर्ट की सख्ती, निजी बैंक को भेजा सम्मन



इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बैंक अधिकारियों को जारी किया सम्मन उत्तर प्रदेश की न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निजी बैंक द्वारा गुंडों…

Uttar Pradesh News: Recovery के मुद्दे पर हाईकोर्ट की सख्ती, निजी बैंक को भेजा सम्मन

इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बैंक अधिकारियों को जारी किया सम्मन

उत्तर प्रदेश की न्यायिक प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निजी बैंक द्वारा गुंडों के माध्यम से लोन वसूली और उत्पीड़न के मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। इस मामले में न्यायालय ने बैंक अधिकारियों को सम्मन जारी करने का निर्देश दिया है, जो इस प्रकार के अनैतिक व्यवहार को रोकने की दिशा में एक सख्त चेतावनी है।

मोहम्मद ओवैस की याचिका पर सुनवाई

यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ल की खंडपीठ ने मोहम्मद ओवैस की याचिका पर दिया है। याचिकाकर्ता ने बताया है कि वह एक सूक्ष्म उद्योग चला रहे हैं और उन पर निजी वित्त कंपनी के रिकवरी एजेंट्स द्वारा लगातार धमकी दी जा रही है। ओवैस का कहना है कि उनके परिवार को भी परेशान किया जा रहा है, जबकि उन्होंने सभी ईएमआई समय पर अदा की हैं और उनका खाता अब तक एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) घोषित नहीं किया गया है।

बीमा दावे की अनदेखी और उत्पीड़न

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि लोन अनुबंध के तहत ग्रुप जनरल इंश्योरेंस पॉलिसी शामिल थी, जो साझेदार की मृत्यु की स्थिति में बकाया ऋण को कवर करती है। हालांकि, बैंक ने बीमा दावे की प्रक्रिया में सहयोग करने के बजाय जबरन वसूली का रास्ता अपनाया। यह स्थिति न केवल ओवैस के लिए बल्कि अन्य ग्राहकों के लिए भी चिंता का विषय बन गई है, जो इस प्रकार की उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का संदर्भ

कोर्ट ने इस मामले में आईसीआईसीआई बैंक बनाम प्रकाश कौर और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी वित्तीय संस्था मसल पावर या गैरकानूनी तरीकों से वसूली नहीं कर सकती। ऐसा करना न केवल संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, बल्कि यह भारतीय रिज़र्व बैंक की फेयर प्रैक्टिस कोड फॉर लेंडर्स का भी खुला उल्लंघन है। इस निर्णय ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय न्यायपालिका ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाने के लिए तैयार है।

बैंकिंग क्षेत्र में नैतिकता की आवश्यकता

इस प्रकार के मामलों में न्यायालय की सक्रियता दर्शाती है कि भारतीय बैंकिंग प्रणाली में नैतिकता और पारदर्शिता की आवश्यकता है। जब ग्राहक अपने ऋण की अदायगी समय पर कर रहे हैं, तो उन्हें इस प्रकार के उत्पीड़न का सामना नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि बैंकिंग संस्थाओं को अपने ग्राहकों के साथ सम्मान और न्याय के साथ व्यवहार करना चाहिए।

उपसंहार

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल ओवैस के लिए बल्कि सभी ग्राहकों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। यह एक चेतावनी है कि बैंकिंग संस्थाओं को अपने कार्यों में नैतिकता और कानूनी दायित्वों का पालन करना चाहिए। जैसे-जैसे यह मामला आगे बढ़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा कि बैंक इस संबंध में क्या कदम उठाते हैं और क्या न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन किया जाता है।

इस मामले में आगे की सुनवाई और अन्य संबंधित मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, यह स्पष्ट है कि भारतीय न्यायपालिका हमेशा ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर है।

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