झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सोमेश सोरेन को घाटशिला उपचुनाव के लिए टिकट दिया
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने घाटशिला विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए दिवंगत विधायक रामदास सोरेन के पुत्र सोमेश सोरेन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। यह निर्णय पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक में सर्वसम्मति से लिया गया। रामदास सोरेन, जो पूर्व शिक्षा मंत्री भी रह चुके थे, के अचानक निधन के कारण यह सीट खाली हो गई थी।
घाटशिला सीट का राजनीतिक महत्व
घाटशिला विधानसभा सीट न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह झामुमो के लिए भावनात्मक रूप से भी एक संवेदनशील मुद्दा बन गई है। रामदास सोरेन अपने क्षेत्र में एक लोकप्रिय नेता रहे हैं, और उनके निधन के बाद वहाँ सहानुभूति की लहर देखी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि झामुमो इस सहानुभूति को अपने पक्ष में भुनाने की रणनीति बना रही है। पार्टी ने बूथ स्तर पर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है और प्रचार की रूपरेखा तैयार की जा रही है।
उपचुनाव में मुकाबला और संभावनाएं
झामुमो ने अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है और अब सभी की नज़रें अन्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों पर हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है। इस उपचुनाव में बाबूलाल सोरेन पहले विधानसभा चुनाव में हार चुके हैं, जब झामुमो के रामदास सोरेन ने उन्हें हराया था। रामदास सोरेन को उस चुनाव में 98,356 वोट मिले थे, जबकि बाबूलाल सोरेन को 75,910 वोट मिले थे।
घाटशिला उपचुनाव का राजनीतिक माहौल
घाटशिला के उपचुनाव का राजनीतिक माहौल इस बार काफी दिलचस्प है। झामुमो के लिए यह सिर्फ एक चुनाव नहीं है, बल्कि यह दिवंगत नेता रामदास सोरेन की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का एक बड़ा अवसर है। पार्टी इस बार चुनावी मैदान में अपनी ताकत को साबित करने के लिए तैयार है।
बाबूलाल सोरेन की चुनौती
बीजेपी के उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन के लिए यह चुनाव एक चुनौती का सामना करने का अवसर है। उन्हें पहले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार वे अपनी राजनीतिक अनुभव को भुनाने का प्रयास करेंगे। घाटशिला सीट पर हो रहे इस उपचुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल सक्रिय हैं और अपने-अपने प्रचार में जुटे हुए हैं।
निष्कर्ष
घाटशिला विधानसभा सीट का उपचुनाव इस बार कई कारणों से महत्वपूर्ण है। झामुमो और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव ना केवल सीट को लेकर बल्कि भावनात्मक जुड़ाव के चलते भी दिलचस्प होगा। अब देखना यह है कि कौन सी पार्टी इस उपचुनाव में विजय प्राप्त करती है।
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