छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के सरेंडर पर उठे राजनीतिक सवाल
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के आत्मसमर्पण को लेकर राजनीतिक माहौल गरमा गया है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष दीपक बैज ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि नक्सलियों के लगातार हो रहे सरेंडर के पीछे कहीं कोई बड़ी साजिश तो नहीं है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या सरकार झीरम घाटी हमले के संदर्भ में जवाबदेह है।
दीपक बैज ने हाल के दिनों में नक्सलियों के आत्मसमर्पण की लगातार आ रही खबरों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब सभी ऑपरेशन्स बंद कर दिए गए हैं, तो सरकार और नक्सलियों के बीच आखिर कौन-सी शांति वार्ता हुई है? उन्होंने यह भी पूछा कि जब 200 नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे थे, तब मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मौके पर क्यों नहीं पहुंचे, और सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर औपचारिकता क्यों निभाई गई?
सरकार की भूमिका पर सवाल
बैज ने आगे यह भी सवाल किया कि रूपेश उर्फ अभय, जो एक सक्रिय नक्सली कमांडर बताया जा रहा है, उसे बड़े मीडिया के सामने पेश क्यों नहीं किया गया। उनका कहना है कि जनता को यह जानने का हक है कि सरकार नक्सलियों के मामले में आखिर किस नीति पर काम कर रही है। इस प्रकार के सवालों ने नक्सल मुद्दे पर सरकार के प्रति लोगों के मन में संदेह पैदा कर दिया है।
अरुण साव का तीखा पलटवार
दीपक बैज के इस बयान पर डिप्टी सीएम अरुण साव ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस हमेशा देश तोड़ने वालों के साथ नजर आती है। उन्होंने यह भी कहा कि सरगुजा से नक्सलवाद को खत्म किया गया है, और अब बस्तर से भी इसे जड़ से मिटा दिया जाएगा। साव ने पार्टी की नीति को लेकर स्पष्ट किया कि भाजपा सरकार नक्सलवाद के खिलाफ पूरी ताकत से काम कर रही है।
नक्सलियों का आत्मसमर्पण: आंकड़े और तथ्य
हाल ही में छत्तीसगढ़ पुलिस को एक बड़ी सफलता मिली है। प्रदेश में 208 नक्सलियों ने एक साथ सरेंडर किया, जिनमें 98 पुरुष और 110 महिलाएं शामिल थीं। आत्मसमर्पण के दौरान उनके द्वारा 153 हथियार भी पुलिस को सौंपे गए, जिनमें AK-47, SLR, इंसास राइफल, BGL लॉन्चर और 12 बोर गन जैसी घातक हथियार शामिल थे। यह नक्सलियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।
झीरम घाटी हमला: एक अनसुलझा मामला
झीरम घाटी में 25 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हमला कर 33 लोगों की हत्या कर दी थी। यह घटना देश के सबसे बड़े राजनीतिक नरसंहारों में से एक मानी जाती है। कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि झीरम की सच्चाई आज भी दफन है और कई सवालों के जवाब सरकार को अब तक देने बाकी हैं। इस हमले ने न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश को हिला दिया था और इसके बाद से नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई और भी तेज हो गई है।
इस प्रकार, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के आत्मसमर्पण के मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी ने एक बार फिर से नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई को सुर्खियों में ला दिया है। कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला न केवल राजनीतिक खेल है, बल्कि यह उन जटिल मुद्दों को भी उजागर करता है जो छत्तीसगढ़ और देश के अन्य हिस्सों में नक्सलवाद से जुड़े हैं।























