किशनगंज के ठाकुरगंज बाजार में विजयादशमी का उत्सव
किशनगंज के ठाकुरगंज बाजार में विजयादशमी का पावन पर्व हर साल की तरह इस वर्ष भी धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस विशेष अवसर पर, 93 वर्षों से चली आ रही रावण दहन की परंपरा ने एक बार फिर से श्रद्धा और उत्साह का संचार किया है। हजारों भक्त इस आयोजन में भाग लेने के लिए जुट रहे हैं, जिससे बाजार का माहौल भक्तिमय बना हुआ है।
रावण दहन और मां दुर्गा की माला की नीलामी
इस आयोजन का मुख्य आकर्षण मां दुर्गा की माला की नीलामी है। रावण दहन से पहले आयोजित होने वाली इस बोली में श्रद्धालु बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। जो व्यक्ति सबसे अधिक राशि चढ़ाता है, उसे 8 फुट ऊंचे रावण के पुतले को जलाने का सौभाग्य प्राप्त होता है। यह एक अद्भुत अनुभव होता है, जो भक्तों के लिए खास महत्व रखता है।
सामाजिक एकता का प्रतीक
इस अवसर पर केवल जिले भर से ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और नेपाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। पूरा इलाका भक्तिमय नारों से गूंज उठता है, जो इस आयोजन की भव्यता को और बढ़ा देता है। समिति के सदस्यों का मानना है कि यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। विभिन्न समुदायों के लोग एक साथ मिलकर मां की भक्ति में लीन हो जाते हैं।
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
कमेटी के अध्यक्ष ने बताया कि हर वर्ष रावण दहन के माध्यम से मां दुर्गा की विजय का संदेश दिया जाता है, जो अधर्म के विनाश और सत्य की स्थापना की प्रेरणा देता है। उन्होंने यह भी बताया कि इस बार की भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे, जिससे सभी भक्त सुरक्षित रूप से इस पूजा में शामिल हो सकें।
सामाजिक जुड़ाव को मजबूत करती परंपरा
स्थानीय प्रशासन, पुलिस बल और स्वयंसेवकों की सक्रियता के चलते इस बार कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। ट्रैफिक प्रबंधन और चिकित्सा सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। समिति के अनुसार, यह परंपरा 1932 से चली आ रही है और यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी सामाजिक जुड़ाव को मजबूत करती रही है।
समिति संयोजक का बयान
बाजार पूजा समिति की संयोजक देवकी अग्रवाल ने कहा कि यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है, जिसमें मां दुर्गा की माला की नीलामी की जाती है। नीलामी में सबसे अधिक बोली लगाने वाले व्यक्ति को रावण के पुतला दहन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
उन्होंने यह भी कहा कि नीलामी की शुरुआत 10,000 रुपये से होती है, जो कि कई बार लाखों रुपये तक पहुंच जाती है। पिछले वर्ष भी यह राशि लाखों रुपये तक पहुंच गई थी। हालांकि, यह राशि समाज के भलाई और मंदिर के विकास कार्यों के लिए उपयोग की जाती है।
पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण आयोजन
यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो रहा है। इसने सामाजिक सद्भाव का मजबूत संदेश दिया है, जहां हिंदू-मुस्लिम सभी समुदायों के लोग एकजुट होकर उत्सव में भाग लेते हैं। किशनगंज जैसे सीमावर्ती जिले में यह परंपरा एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक घटना बन चुकी है, जो न केवल स्थानीय लोगों को जोड़ती है, बल्कि बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनती है।
इस प्रकार, विजयादशमी का यह पर्व किशनगंज में एक अनूठा उत्सव बनकर उभरा है, जो न केवल धार्मिकता का प्रतीक है, बल्कि समाज में एकता और सद्भाव का संदेश भी फैलाता है।