SBI: उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर एक लाख रुपए का हर्जाना लगाया, 5 साल तक लटकाए रखा आवेदन



इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति में देरी पर SBI पर लगाया हर्जाना इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को पांच साल तक लटकाए रखने के मामले में भारतीय स्टेट…

SBI: उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया पर एक लाख रुपए का हर्जाना लगाया, 5 साल तक लटकाए रखा आवेदन

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति में देरी पर SBI पर लगाया हर्जाना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को पांच साल तक लटकाए रखने के मामले में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया है। हालांकि, कोर्ट ने नियुक्ति की मांग को खारिज करते हुए कहा कि याचिका में विलंब के कारण इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने बांदा के निवासी प्रिंसू सिंह की याचिका पर सुनाया।

याचिकाकर्ता की पृष्ठभूमि और मामला

याचिकाकर्ता प्रिंसू सिंह के पिता एक बैंक कर्मचारी थे, जिनकी 2019 में सेवा के दौरान मृत्यु हो गई। प्रिंसू की मां ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए बैंक को आवेदन दिया, लेकिन बार-बार प्रयास करने के बावजूद बैंक ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया। इससे निराश होकर प्रिंसू ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता का कहना था कि 16 मार्च 2021 को लागू हुई संशोधित योजना के तहत आवेदन के लिए छह महीने की समय सीमा निर्धारित की गई थी, लेकिन उसका पहला आवेदन पिता की मृत्यु के छह महीने के भीतर ही किया गया था। इसलिए, यह योजना उस पर लागू नहीं होनी चाहिए।

कोर्ट का निर्णय और विचारधारा

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में अनुचित सहानुभूति या अति उदार दृष्टिकोण की अनुमति नहीं दी जा सकती है। न्यायालय ने कहा कि यदि नियुक्ति के लिए आवेदन देने में देरी होती है, तो यह माना जाता है कि परिवार के सामने मौजूद तत्काल वित्तीय संकट समाप्त हो गया है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कई वर्षों तक पारिवारिक मुकदमेबाजी में व्यस्त रहा और न्यायालय आने में जानबूझकर देरी की। इससे यह संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक था और उसके पास न्यायालय में जाने के लिए पर्याप्त संसाधन भी थे।

हर्जाना का आदेश और भविष्य की दिशा

कोर्ट ने याचिकाकर्ता की लापरवाही को क्षमा योग्य नहीं माना और इस आधार पर याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, बैंक द्वारा आवेदन पर समय पर निर्णय न लेने के कारण उसे एक लाख रुपये का हर्जाना भुगतने का आदेश दिया गया। यह निर्णय न केवल बैंक की जिम्मेदारी को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायालय ऐसे मामलों में समय की गंभीरता को समझता है।

इस फैसले से यह स्पष्ट है कि अनुकंपा नियुक्ति जैसे मामलों में प्रशासनिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और तत्परता आवश्यक है। अदालत ने यह भी संकेत दिया है कि ऐसे मामलों में लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में इस तरह के मामलों में समय पर निर्णय लिए जाएंगे, जिससे प्रभावित परिवारों को जल्दी सहायता मिल सके।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल प्रिंसू सिंह के लिए बल्कि सभी उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है, जो अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन करते हैं। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक है और लापरवाही करता है, तो उसे परिणाम भुगतने होंगे। इस मामले ने यह भी दिखाया है कि प्रशासनिक संस्थाओं को अपनी जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए और समय पर निर्णय लेने के लिए तत्पर रहना चाहिए।

इस प्रकार, यह मामला न केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि यह सरकारी तंत्र की जिम्मेदारी और पारदर्शिता की आवश्यकता को भी उजागर करता है।

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