कौशांबी में दशहरे पर ऐतिहासिक कुप्पी युद्ध का आयोजन
कौशांबी के दारानगर में इस वर्ष दशहरे के अवसर पर एक अनूठा और ऐतिहासिक कुप्पी युद्ध का मंचन किया गया। यह युद्ध लगभग 246 वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा है, जिसमें राम और रावण की सेनाएं वास्तविक रूप से युद्ध करती हैं। इस दो दिवसीय आयोजन का पहला दिन दशहरे पर होता है और यह अगले दिन भी जारी रहता है।
कुप्पी युद्ध की इस परंपरा में प्लास्टिक के घड़े (कुप्पी) को युद्ध का हथियार बनाया जाता है। दोनों सेनाएं एक-दूसरे पर कुप्पियों से प्रहार करती हैं, जिससे यह युद्ध न केवल रोचक बनता है, बल्कि दर्शकों के लिए भी एक अद्भुत अनुभव होता है। राम की सेना आमतौर पर भगवा रंग की वेशभूषा पहनती है, जबकि रावण की सेना काले रंग के वस्त्रों में होती है।
युद्ध की परंपरा और उसकी विशेषताएँ
कुप्पी युद्ध में परंपरा के अनुसार, पहले दिन रावण की सेनाएं विजयी होती हैं। यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि बुराई के प्रतीक रावण की विजय होती है, लेकिन दूसरे दिन के अंतिम युद्ध में राम की सेना को विजेता घोषित किया जाता है। यह विजय दर्शकों में उत्साह और उल्लास का संचार करती है और अंततः यह दर्शाता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय प्राप्त करती है।
- कुप्पी युद्ध में भाग लेने वाले कलाकारों के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
- प्रत्येक साल हजारों दर्शकों की भीड़ इस आयोजन को देखने आती है।
- यह आयोजन न केवल कौशांबी, बल्कि आस-पास के जिलों जैसे प्रयागराज, फतेहपुर, प्रतापगढ़, चित्रकूट, बांदा और कानपुर से भी दर्शकों को आकर्षित करता है।
इस अनोखे युद्ध को देखने के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। इस वर्ष भी दारानगर में हजारों दर्शक पहुंचे, जिन्होंने इस परंपरा का आनंद लिया। मेले के मैदान में सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए पुलिस, पीएसी और होमगार्ड के जवान तैनात थे। पहले दिन कौशांबी के जिलाधिकारी मधुसूदन हुल्गी, पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार, एसडीएम और सीओ सिराथू सहित कई आला अधिकारी और रामलीला कमेटी के सदस्य मौजूद थे।
कुप्पी युद्ध का सांस्कृतिक महत्व
कुप्पी युद्ध केवल एक खेल नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस युद्ध के माध्यम से सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का प्रयास किया जाता है। यह आयोजन न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह एक शिक्षा का माध्यम भी है, जिसमें अच्छाई और बुराई के बीच युद्ध का प्रतीकात्मक चित्रण किया जाता है।
इस प्रकार के आयोजनों से युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने में सहायता मिलती है और वे अपने पूर्वजों की परंपराओं को समझ पाते हैं। कुप्पी युद्ध जैसे आयोजन हमें यह सिखाते हैं कि हमें सच्चाई, धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलना चाहिए।
इस साल का कुप्पी युद्ध भी दर्शकों के लिए एक यादगार अनुभव बना, जिसमें युवा और बुजुर्ग सभी ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि हमारी परंपराएँ और सांस्कृतिक धरोहर हमेशा जीवित रहेंगे, जब तक हम उन्हें संजोकर रखेंगे।
इस प्रकार, कौशांबी में आयोजित कुप्पी युद्ध ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया कि भारतीय संस्कृति की विविधता और गहराई इसे अद्वितीय बनाती है। आने वाले वर्षों में इस परंपरा को और भी मजबूती से आगे बढ़ाने की अपेक्षा की जाती है।