बिलासपुर-रायपुर हाइवे पर ग्रामीणों का चक्का जाम प्रदर्शन
बिलासपुर-रायपुर नेशनल हाइवे पर आज स्थानीय ग्रामीणों ने **ढाई घंटे** तक चक्का जाम किया। यह प्रदर्शन सुबह **10 बजे** से लेकर दोपहर **12:30 बजे** तक चला, जिसके कारण सैकड़ों भारी वाहन फंस गए। प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांग थी कि मानिकपुर, धुमा और सिलपहरी की जर्जर सड़कों का सुधार किया जाए। जब प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो ग्रामीणों ने सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज कराया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस और तहसीलदार मौके पर पहुंचे, लेकिन ग्रामीणों का आक्रोश जारी रहा।
ग्रामीणों का यह प्रदर्शन मानिकपुर, धुमा और सिलपहरी की खराब सड़कों के सुधार की लंबित मांग को लेकर किया गया। यह मांग पिछले **18 वर्षों** से अधूरी है और ग्रामीण पहले भी कई बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं। प्रदर्शन में ग्राम पंचायत धूमा की सरपंच पूजा विवेक पटेल, ढेका के सरपंच मनीष घोरे, मानिकपुर की सरपंच सुनीता केंवट और जनपद सदस्य रमादेवी मौर्य सहित सैकड़ों ग्रामीण शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने “हमारी सड़कों का सुधार करो” जैसे नारे लगाए।
चक्का जाम का स्थान और उसके प्रभाव
प्रदर्शनकारियों ने चक्का जाम के लिए एनएच-40 स्थित ढेका चौक को चुना, जो कि एक रणनीतिक स्थान है। इस स्थान से पाँच बड़े शहरों और जिला मुख्यालयों की ओर कई सड़कें निकलती हैं। प्रदर्शन के कारण हाइवे पर भारी वाहनों की लंबी कतारें लग गईं, जिससे यातायात पूरी तरह बाधित हो गया। स्थानीय लोगों के लिए यह स्थिति काफी कठिनाइयों का कारण बनी, क्योंकि उन्हें अपने गंतव्य तक पहुँचने में काफी समय लग रहा था।
धूमा की सरपंच पूजा विवेक पटेल ने बताया कि पीडब्ल्यूडी ने कुछ स्थानों पर गिट्टी डालकर गड्ढे भरने का कार्य किया है। तहसीलदार मनीष साहू ने नवंबर तक सड़क के डामरीकरण का आश्वासन दिया है। हालांकि, ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि दिए गए आश्वासन पर अमल नहीं किया गया, तो वे उग्र प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होंगे, जिसकी पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।
सड़क सुधार के लिए 7 करोड़ का टेंडर विवाद में फंसा
मस्तूरी विधायक के प्रतिनिधि संतोष दुबे ने जानकारी दी कि धूमा-सिलपहरी-मानिकपुर हाइवे के सुधार के लिए पीडब्ल्यूडी ने **7 करोड़** का टेंडर जारी किया था। इस मुद्दे पर जिला पंचायत में यह चर्चा हुई थी कि जिस व्यक्ति की सड़क पर जमीन नहीं है, उसने नाहक मुआवजे की मांग उठाकर कार्य में बाधा उत्पन्न कर दी है। दुबे का दावा है कि संबंधित गांव के सरपंच और पटवारी ने लिखकर दे दिया है कि आपत्ति करने वाले व्यक्ति की वहां जमीन नहीं है।
सूत्रों के अनुसार, टेंडर पर एक व्यक्ति की आपत्ति के कारण मामला अटक गया है। इसी वजह से निर्माण का कार्य शुरू नहीं हो पाया है। भारी वाहनों के गुजरने से सड़क जर्जर हो चुकी है और इसके तत्काल सुधार की आवश्यकता है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि सड़क की खराब स्थिति के कारण इस मार्ग पर अक्सर दुर्घटनाएं होती रहती हैं।
ग्रामीणों की मांग और प्रशासन की प्रतिक्रिया
ग्रामीणों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि प्रशासन उनकी मांगों को नजरअंदाज करता है, तो वे भविष्य में और भी बड़े प्रदर्शन कर सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि सड़क के सुधार में हो रही देरी से न केवल उनका जीवन प्रभावित हो रहा है, बल्कि इससे क्षेत्र का विकास भी ठप्प पड़ा है।
प्रशासन के लिए यह एक महत्वपूर्ण चुनौती है कि वह ग्रामीणों की मांगों का समाधान करे और सड़क का सुधार जल्द से जल्द सुनिश्चित करे। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। ग्रामीणों ने एकजुट होकर अपनी आवाज उठाई है और अब यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह उनकी इस आवाज को सुने और आवश्यक कदम उठाए।
इस घटना ने न केवल स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में ला दिया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि ग्रामीणों के मुद्दों को गंभीरता से लेना कितना आवश्यक है। यदि प्रशासन ने जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं किया, तो भविष्य में और अधिक आंदोलन देखने को मिल सकते हैं।