Uttarakhand News: उत्तराखंड कैडर के IFS मामले से 16 जजों ने किया खुद को अलग



उत्तराखंड: संजीव चतुर्वेदी का मामला, हाई कोर्ट के एक और न्यायाधीश ने लिया अलग जागरण संवाददाता, नैनीताल। उत्तराखंड कैडर के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ चल रहे मामले में…

Uttarakhand News: उत्तराखंड कैडर के IFS मामले से 16 जजों ने किया खुद को अलग

उत्तराखंड: संजीव चतुर्वेदी का मामला, हाई कोर्ट के एक और न्यायाधीश ने लिया अलग

जागरण संवाददाता, नैनीताल। उत्तराखंड कैडर के आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ चल रहे मामले में एक और महत्वपूर्ण मोड़ आ गया है। हाल ही में, उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस आलोक वर्मा ने चतुर्वेदी द्वारा दायर अवमानना याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस तरह, अब तक सुप्रीम कोर्ट के दो सहित 16 न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई से अलग हो चुके हैं। इनमें हाई कोर्ट के चार न्यायाधीश, एक कैट के अध्यक्ष, आठ कैट सदस्य और दो निचली अदालतों के न्यायाधीश शामिल हैं।

संजीव चतुर्वेदी ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के सदस्यों के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी। यह मामला काफी जटिल हो गया है, जिसमें न्यायिक प्रणाली के कई महत्वपूर्ण सदस्य शामिल हैं। इससे पहले, हाई कोर्ट के एक अन्य न्यायाधीश ने भी इस मामले से अलग होने का निर्णय लिया था। यह स्थिति तब उत्पन्न हुई जब कैट के सदस्यों द्वारा की गई कार्यवाही को लेकर चतुर्वेदी ने गंभीर आरोप लगाए थे।

कैट के सदस्यों के खिलाफ अवमानना याचिका

चतुर्वेदी ने अपनी अवमानना याचिका में आरोप लगाया था कि कैट के सदस्यों ने उनके खिलाफ गलत निर्णय लिए हैं। फरवरी 2025 में, कैट के दो सदस्य हरविंदर ओबेराय और बी.आनंद ने भी इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस प्रकार, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि चतुर्वेदी के मामले में न्यायिक प्रणाली के कई सदस्य अपनी भूमिका निभाने से कतराने लगे हैं।

अप्रैल 2025 में, अतिरिक्त सीजेएम नेहा कुशवाहा ने भी इस मामले से खुद को अलग कर लिया था। उन्होंने अपने इस निर्णय का कारण कैट के एक अन्य न्यायाधीश के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को बताया। चतुर्वेदी ने यह भी आरोप लगाया कि हाई कोर्ट ने एक स्थगनादेश पारित किया था, लेकिन इसके बावजूद कैट ने मामले की सुनवाई जारी रखी।

मानहानि मामले की जांच

इससे पहले, फरवरी 2025 में कैट की खंडपीठ ने चतुर्वेदी के वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए खुद को अलग कर लिया था। इस मामले में चतुर्वेदी ने भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर किया था जब वह एम्स दिल्ली में मुख्य सतर्कता अधिकारी थे। हाई कोर्ट ने पहले ही इस मामले में चतुर्वेदी के पक्ष में निर्णय देते हुए केंद्र सरकार पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस जुर्माने की राशि को बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया था, जिससे यह साबित होता है कि न्यायालय इस मामले को गंभीरता से ले रहा है। इसके अलावा, वर्ष 2021 में चतुर्वेदी की ओर से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति से संबंधित मामला भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

भ्रष्टाचार के मामलों में जटिलता

नवंबर 2013 में, सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस रंजन गोगोई ने हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अन्य वरिष्ठ राजनीतिज्ञों तथा नौकरशाहों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच का आदेश दिया था। इस मामले में भी संजीव चतुर्वेदी का नाम शामिल रहा है। इसके बाद, यूयू ललित नाम के एक अन्य न्यायाधीश ने भी इस मामले से खुद को अलग कर लिया था।

  • अप्रैल 2018 में, शिमला की एक अदालत के न्यायाधीश ने संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ मानहानि मामले से खुद को अलग कर लिया था।
  • मार्च 2019 में, कैट दिल्ली के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस एनएन रेड्डी ने चतुर्वेदी के विभिन्न स्थानांतरण याचिकाओं से संबंधित मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
  • फरवरी 2021 में, कैट दिल्ली के एक अन्य न्यायाधीश आरएन सिंह ने भी चतुर्वेदी की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से संबंधित मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

संजीव चतुर्वेदी का आरोप और न्यायिक संघर्ष

नवंबर 2023 में, चतुर्वेदी ने कैट के न्यायाधीश मनीष गर्ग के खिलाफ एसीजेएएम कोर्ट में आपराधिक मानहानि का वाद दायर किया। उनका आरोप था कि भर्ती प्रक्रिया में अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया। इस मामले में 17 अक्टूबर 2024 को नैनीताल पीठ ने आपराधिक अवमानना नोटिस जारी किया। इसके बाद, 19 फरवरी 2025 को कैट के दो जजों ने स्वतः संज्ञान लेकर मामले से खुद को अलग कर लिया।

इस प्रकार, यह मामला न्यायपालिका में गहराई से जुड़ा हुआ है। संजीव चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने स्थगनादेश पारित किया था। इसके बावजूद, कैट ने मामले की सुनवाई जारी रखी, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायिक प्रणाली में जटिलताएँ बढ़ती जा रही हैं। संजीव चतुर्वेदी का यह संघर्ष न केवल उनके व्यक्तिगत मामले के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

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