Police कमिश्नर के लिए काबिलियत की कमी: कानपुर में एक महीने बाद भी अखिल कुमार की रिलीव नहीं हुई



कानपुर पुलिस कमिश्नर की तैनाती में देरी: क्या वजह है? कानपुर के मौजूदा पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार की केंद्र में नियुक्ति को एक महीना हो चुका है। लेकिन, अभी तक…

Police कमिश्नर के लिए काबिलियत की कमी: कानपुर में एक महीने बाद भी अखिल कुमार की रिलीव नहीं हुई

कानपुर पुलिस कमिश्नर की तैनाती में देरी: क्या वजह है?

कानपुर के मौजूदा पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार की केंद्र में नियुक्ति को एक महीना हो चुका है। लेकिन, अभी तक उनकी रिलीविंग नहीं हुई है और न ही कानपुर में नए कमिश्नर की तैनाती की गई है। इस स्थिति ने महकमे में चर्चा को जन्म दिया है कि क्या कानपुर के लिए कोई सक्षम पुलिस अधिकारी उपलब्ध नहीं है, या सरकार को भरोसेमंद अधिकारियों की कमी महसूस हो रही है।

इस बीच, कई सवाल भी उठ रहे हैं, जैसे कि क्या अखिलेश दुबे प्रकरण की वजह से इस प्रक्रिया में देरी हो रही है? क्या अखिल कुमार को डीजी बनने तक का इंतजार किया जा रहा है? यह सब बातें महकमे में चर्चा का विषय बन गई हैं।

कानपुर कमिश्नरेट का विवादित इतिहास

कानपुर कमिश्नरेट के संदर्भ में बात करें तो, यहां के कमिश्नरों का इतिहास हमेशा विवादों से भरा रहा है। जब से 2021 में कमिश्नरेट सिस्टम लागू हुआ, तब से यहां तैनात होने वाले अधिकारियों के लिए विवादों का सामना करना आम बात हो गई है। पहले असीम अरुण बने पुलिस कमिश्नर, जिन्होंने खुद भाजपा में शामिल होकर पुलिस सेवा से रिटायरमेंट ले लिया। इसके बाद विजय सिंह मीना को नियुक्त किया गया, लेकिन उन्हें भी कानपुर में हुए बवाल के बाद हटाना पड़ा।

इसके बाद बीपी जोगदंड और फिर आरके स्वर्णकार को कमिश्नर के पद पर नियुक्त किया गया, लेकिन दोनों ही अधिक समय तक वहां नहीं टिक सके। ऐसे में जब अखिल कुमार को गोरखपुर एडीजी जोन से कानपुर लाया गया, तो उन्हें विभाग की व्यवस्था को सुधारने में काफी समय लगा।

अखिलेश दुबे प्रकरण: क्या यह समस्या का मुख्य कारण है?

कानपुर में नए कमिश्नर की तैनाती में देरी के पीछे अखिलेश दुबे प्रकरण को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस मामले को समाप्त करने की जिम्मेदारी भी अखिल कुमार को दी गई है। इसी कारण उनकी रिलीविंग में देरी हो रही है। पुलिस अब इस मामले को शांत करने की कोशिश कर रही है, और पिछले कुछ समय में इस प्रकरण से संबंधित कोई नई शिकायत भी दर्ज नहीं की गई है।

पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह का मानना है कि इस मामले की गहरी जांच होनी चाहिए। उन्हें लगता है कि सिर्फ इंस्पेक्टर और सीओ को बलि का बकरा बनाना ठीक नहीं है, बल्कि बड़े अधिकारियों को भी जिम्मेदार ठहराना चाहिए।

क्या भरोसे की कमी है या काबिलियत की?

यूपी में पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। प्रदेश में कुल 7 जिलों में यह प्रणाली कार्यरत है, जिसमें चार जिलों में एडीजी रैंक के अधिकारी और तीन जिलों में आईजी रैंक के अधिकारी तैनात हैं। कानपुर कमिश्नरेट को अब तक 5 कमिश्नर मिल चुके हैं, जबकि छठे की तलाश जारी है।

वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार का कहना है कि प्रदेश में काबिल पुलिस अधिकारियों की कमी नहीं है, बल्कि यह मामला भरोसे का है। कई अधिकारियों को केवल इसलिए नजरअंदाज किया जा रहा है क्योंकि वे पूर्व सरकारों में उच्च पदों पर रहे हैं।

अखिल कुमार का प्रमोशन और केंद्र में नियुक्ति

अखिल कुमार अगले महीने डीजी रैंक में प्रमोशन पा जाएंगे। इस बीच, उनका रिलीव होना भी एक बड़ी चुनौती बन चुका है। यदि अखिल कुमार को रिलीव नहीं किया गया, तो डीके ठाकुर 1 नवंबर को डीजी बन जाएंगे।

अखिल कुमार की तैनाती एक महत्वपूर्ण पद पर डिजिटल इंडिया कॉर्पोरेशन में की गई है। गृह विभाग ने उन्हें तुरंत रिलीव करने का आदेश भी दिया था, लेकिन एक महीने बाद भी यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है।

निष्कर्ष

कानपुर में पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति में देरी न केवल महकमे के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह प्रदेश की कानून व्यवस्था पर भी असर डालती है। यदि जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो इससे कानपुर की पुलिस व्यवस्था में और भी अधिक बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।

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इस प्रकार, कानपुर पुलिस कमिश्नर की तैनाती और चंद्रशेखर के विवादों ने प्रदेश में एक नई चर्चा को जन्म दिया है, जो आगे चलकर और भी बड़े मुद्दों का रूप ले सकता है।

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