Cultural उत्सव: प्रयागराज में मालिनी अवस्थी ने लोकगीतों से किया श्रोताओं को मंत्रमुग्ध, तीन दिवसीय संस्कृति उत्सव की शुरुआत



प्रयागराज में “लोक रंग, माटी के संग” उत्सव की धूम प्रयागराज में व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय लोक संस्कृति उत्सव “लोक रंग, माटी के संग” का…

Cultural उत्सव: प्रयागराज में मालिनी अवस्थी ने लोकगीतों से किया श्रोताओं को मंत्रमुग्ध, तीन दिवसीय संस्कृति उत्सव की शुरुआत

प्रयागराज में “लोक रंग, माटी के संग” उत्सव की धूम

प्रयागराज में व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय लोक संस्कृति उत्सव “लोक रंग, माटी के संग” का शुभारंभ शुक्रवार को हुआ। इस मौके पर “भारतीय लोक संस्कृति की समृद्ध परंपरा एवं नवाचार” विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र भी आयोजित किया गया। इस उत्सव का उद्देश्य भारतीय लोक संस्कृति को संरक्षित करना और इसे नई पीढ़ी तक पहुँचाना है।

उद्घाटन सत्र में सुधीर नारायण ने कहा कि लोकाचार हमारी परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है और इसकी जानकारी अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना हम सभी की जिम्मेदारी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं पद्मश्री विद्या बिंदु सिंह ने लोकगीतों को सामाजिक समरसता का आधार बताते हुए कहा कि ये हमारी संस्कृति का अनमोल हिस्सा हैं।

संगोष्ठी में ज्ञानवर्धक विचारों का आदान-प्रदान

संगोष्ठी का बीज वक्तव्य वृंदावन से आए वत्स गोस्वामी ने दिया। इस सत्र में खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति लवली शर्मा और इलाहाबाद संग्रहालय के राजेश मिश्रा ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। पहले दिन विभिन्न सत्रों में प्रो. साहित्य कुमार नाहर, प्रो. स्वतंत्र शर्मा, राम बहादुर मिश्रा, गोपाल भाई जी, अतुल द्विवेदी, रमाशंकर और उदय चंद्र परदेसी ने भारतीय लोक कला की वर्तमान स्थिति और भविष्य पर अपने विचार साझा किए।

इन विचारों के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ कि भारतीय लोक कला की धारा को बनाए रखने के लिए नवाचार की आवश्यकता है। सांस्कृतिक समागम में शामिल विद्वानों ने इस बात पर जोर दिया कि यदि हम अपनी परंपराओं को नए रूप में प्रस्तुत नहीं करेंगे, तो वे धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएंगी।

सांस्कृतिक संध्या में पद्मश्री मालिनी अवस्थी का जादू

सांस्कृतिक संध्या इस कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण रहा। पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने अपनी लोकगीत प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके गायन ने सभागार में एक अद्भुत माहौल बना दिया, जिससे बार-बार तालियों की गूंज सुनाई दी। उन्होंने कहा, “नवाचार के बिना लोक संस्कृति को बचाना संभव नहीं है। परंपराओं को नए रूप में प्रस्तुत कर ही हम इन्हें अगली पीढ़ी तक पहुँचा सकते हैं।”

कार्यक्रम के संयोजक मधु शुक्ला और राजेश तिवारी ने समारोह के दौरान अतिथियों का स्वागत करते हुए आभार व्यक्त किया। विभिन्न सत्रों का संचालन डॉ. गोपाल मिश्रा, डॉ. सतीश प्रजापति और आकांक्षा पाल ने किया। इस आयोजन ने स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ-साथ समाज में एकता और सद्भावना का संदेश भी दिया।

कार्यक्रम की शुरुआत में मधुर संगीत का आनंद

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. शुचि उपाध्याय और उनकी टीम के मधुर गायन से हुई। इस खास मौके पर धनंजय चोपड़ा, अनिल शुक्ला, शांभवी शुक्ला, श्रेयस शुक्ला, मृत्युंजय परमार, रंजना त्रिपाठी, अर्पित मिश्र सहित कई सम्मानित लोग मौजूद रहे। यह कार्यक्रम न केवल सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक था, बल्कि समाज में एकता का संदेश भी देने वाला था।

इस तीन दिवसीय उत्सव में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से लोक संस्कृति की विविधता और समृद्धि को प्रस्तुत किया जाएगा। आयोजकों का मानना है कि इस तरह के कार्यक्रमों से स्थानीय कलाओं को न केवल पहचान मिलेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बनेगी।

प्रयागराज में आयोजित इस उत्सव ने यह साबित कर दिया है कि लोक संस्कृति को संरक्षित करने के लिए समुदाय की भागीदारी आवश्यक है। ऐसे आयोजनों से न केवल संस्कृति को बल मिलता है, बल्कि यह समाज में एकता और समरसता को भी बढ़ावा देता है।

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