वरुथिनी एकादशी का व्रत 24 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस समय वैशाख मास चल रहा है, जिसे धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। वैशाख और एकादशी का योग धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत रखा जाता है और आम, तरबूज और खरबूज जैसे मौसमी फलों का दान करने की परंपरा है। ज्योतिषाचार्य डॉ. अनिश व्यास, जो कि जयपुर जोधपुर के पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान के निदेशक हैं, ने बताया कि एकादशी पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस साल वरुथिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास की कृष्ण पक्ष में 24 अप्रैल को मनाया जाएगा।
मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी का धार्मिक महत्व भगवान कृष्ण ने स्वयं अर्जुन को बताया था। इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्यक्ति को सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। वैशाख मास भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए इस महीने में आने वाली एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। कहा जाता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत आर्थिक संकट को दूर करने में बहुत लाभकारी होता है। इस दिन भगवान विष्णु के वराह रूप की पूजा की जाती है, और इस एकादशी का व्रत भक्तों के सभी पाप और दुखों को मिटाता है। वरुथिनी एकादशी के व्रत और दान का पुण्य सूर्य ग्रहण के समय किए गए दान के समान माना जाता है। भगवान विष्णु की कृपा से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और उनके कामों में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनिश व्यास ने बताया कि वरुथिनी एकादशी के व्रत को रखने से भगवान विष्णु के सभी अवतार प्रसन्न होते हैं। इस व्रत को रखने से जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती, कर्ज से मुक्ति मिलती है और परिवार में समृद्धि आती है। वरुथिनी एकादशी को वैशाख एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन लोग देवताओं को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
डॉ. अनिश व्यास ने यह भी बताया कि एकादशी के दिन कोई भी नशे वाली वस्तुएं, मांस या शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन चावल खाना भी वर्जित माना जाता है, इसलिए यदि आप व्रत नहीं भी रखते हैं, तो चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन गुस्सा नहीं करना चाहिए और किसी के प्रति अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
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वरुथिनी एकादशी का व्रत 23 अप्रैल को सुबह 4:44 बजे से शुरू होगा और 24 अप्रैल को दोपहर 2:31 बजे समाप्त होगा। ऐसे में शास्त्रों के अनुसार व्रत केवल उday तिथि में रखा जाना चाहिए, इसलिए 24 अप्रैल को वरुथिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा।
डॉ. अनिश व्यास ने बताया कि वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को वरुथिनी एकादशी के महत्व के बारे में बताया था। इस व्रत को रखने से कन्या दान के समान पुण्य मिलता है। मान्यता है कि राजा मंधाता ने वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर ही स्वर्ग की प्राप्ति की थी।
इस एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए। जल अर्पित करने के लिए तांबे के कमल का उपयोग करना चाहिए। घर के मंदिर में गणेश पूजा करें। गणेश जी को जल और पंचामृत से स्नान कराएं, उन्हें वस्त्र और फूलों से सजाएं, चंदन का तिलक लगाएं और दूर्वा अर्पित करें। लड्डू का भोग लगाएं और धूप-दीप जलाएं। इसके बाद भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की पूजा करें। विष्णु-लक्ष्मी को शंख से अभिषेक करें। यदि अभिषेक में दूध का उपयोग किया जाए तो यह बहुत शुभ रहेगा।
इस दिन भगवान विष्णु को शंख, चक्र, कमल, गदा और पीताम्बर अर्पित करने चाहिए। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का पाठ करना बहुत फलदायी होता है। भक्तों को श्रद्धा के साथ पूजा करनी चाहिए और द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिए।
– डॉ. अनिश व्यास
ज्योतिषाचार्य एवं भविष्यवक्ता