Narada Muni एक दिव्य ऋषि हैं और ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं। उन्हें ‘देवरishi’ का भी नाम दिया गया है। नारद मुनि सभी तीन लोकों में भ्रमण करते हैं और ऋषियों, देवताओं और असुरों के बीच संवाद का माध्यम बनते हैं। उनके हाथ में एक वीणा होती है और वे हमेशा ‘नारायण-नारायण’ का उच्चारण करते हैं। नारद जी को भगवान श्रीहरि विष्णु के विशेष भक्त माना जाता है। आइए जानते हैं नारदा जयंती की पूजा विधि और इसका महत्व।
**नारद ऋषि का स्थान**
नारद मुनि का नाम महाभारत, रामायण, भागवत और शिव पुराण जैसे कई ग्रंथों में मिलता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब वाल्मीकि जी ने यह सवाल उठाया कि इस धरती पर शुद्धता, गरिमा और सर्वव्यापिता क्या है, तब नारद मुनि ने श्री राम की कथा सुनाई, जिससे प्रेरित होकर वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की।
**नारदा जयंती कब मनाई जाती है**
हर साल नारदा जयंती का त्योहार ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह 13 मई 2025 को मनाई जाएगी। नारदा जयंती का पर्व नारद मुनि की स्मृति, भक्ति, संवाद और धर्म के प्रचार के लिए मनाया जाता है।
**पूजा विधि**
इस दिन सुबह जल्दी स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर पूजा स्थल को साफ करें और नारदा मुनि की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद नारदा मुनि को चंदन, फूल, मालाएं, धूप, दीप, फल, नैवेद्य आदि अर्पित करें। पूजा के दौरान ‘ॐ नर्दाय नमः’ मंत्र का जाप करें। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम, नारद भक्ति सूत्र या नारायण स्तोत्र का पाठ करना भी शुभ माना जाता है। नारद जी को संगीत और भजन प्रिय हैं, इसलिए इस दिन मंदिरों में भजन-कीर्तन करने को भी शुभ माना जाता है।
**नारदा जयंती का महत्व**
नारदा मुनि संवाद, चर्चा और जन कल्याण की भक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। वे न केवल दिव्य घटनाओं को जोड़ने वाले हैं, बल्कि भक्ति के मार्ग पर कार्यरत शक्तिशाली प्रचारक भी हैं। नारदा जयंती पत्रकारों, वक्ताओं, संगीत प्रेमियों और भक्ति मार्ग के साधकों के लिए एक प्रेरणादायक पर्व है।