E-Waste: राजस्थान में आज अंतरराष्ट्रीय ई-कचरा दिवस, हर साल 21 मीट्रिक टन से अधिक ई-वेस्ट निकलने से तीन गुना बढ़ा संकट



राजस्थान में ई-वेस्ट की बढ़ती समस्या और समाधान आईटी के युग में, मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर जैसे उपकरणों के नए-नए मॉडल लगातार लॉन्च हो रहे हैं, जिससे इनका कबाड़ भी…

E-Waste: राजस्थान में आज अंतरराष्ट्रीय ई-कचरा दिवस, हर साल 21 मीट्रिक टन से अधिक ई-वेस्ट निकलने से तीन गुना बढ़ा संकट

राजस्थान में ई-वेस्ट की बढ़ती समस्या और समाधान

आईटी के युग में, मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर जैसे उपकरणों के नए-नए मॉडल लगातार लॉन्च हो रहे हैं, जिससे इनका कबाड़ भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। राजस्थान में हर साल लगभग 21 मीट्रिक टन से अधिक ई-वेस्ट उत्पन्न हो रहा है। यह स्थिति पिछले पांच वर्षों में और गंभीर हो गई है, जिससे राज्य की पर्यावरणीय स्थिति पर प्रभाव डालने की आशंका बढ़ गई है।

राज्य सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए नवंबर 2024 में एक कंपनी के साथ मिलकर ई-वेस्ट प्रबंधन के लिए एक इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है। इस समझौते के तहत, ई-वेस्ट को रीसाइक्लिंग करके बेचने से अनुमानित 115 करोड़ रुपए की वार्षिक आमदनी होने की उम्मीद है। इसके अलावा, इस फॉर्मल ई-वेस्ट प्रोसेसिंग से सरकार को जीएसटी के माध्यम से लगभग 20 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की अतिरिक्त आय होने की संभावना है। वर्तमान में, राज्य में कुल 23 ई-वेस्ट प्रोसेसिंग इकाइयाँ कार्यरत हैं।

ई-वेस्ट की उत्पत्ति और उसकी चुनौतियाँ

पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अनुसार, राजस्थान में 2018-19 से औसतन 21,953.55 मीट्रिक टन ई-वेस्ट हर साल निकल रहा है। हालाँकि, विभाग ने वर्ष 2024-25 के आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए हैं। देश की सबसे बड़ी ई-वेस्ट मंडी पूर्वी दिल्ली के सीलमपुर में स्थित है, जहां लाखों लोग ई-कचरे से सोना, चांदी, तांबा और अन्य धातुएं निकालने का काम करते हैं। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 के अनुसार, भारत में हर साल 32 लाख मीट्रिक टन ई-कचरा निकलता है, जिसमें से अकेले दिल्ली में हर साल लगभग 2,00,000 टन ई-कचरा उत्पन्न होता है।

राजस्थान के कई जिलों में इन दिनों दिल्ली, भोपाल, इंदौर जैसे बड़े शहरों से लोग पुराने उपकरण खरीदने आ रहे हैं। हालाँकि, इन उपकरणों के लिए बहुत कम दाम दिए जा रहे हैं। कबाड़ के व्यापारी एक मोबाइल फोन के लिए लगभग 100 रुपए तक दे रहे हैं। मोबाइल फोन में कई सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स होते हैं, जिनमें सोने का उपयोग होता है क्योंकि सोना बिजली को बेहतरीन तरीके से कंडक्ट करता है। इसके अलावा, चांदी और तांबे का भी उपयोग किया जाता है।

ई-वेस्ट से सोना निकालना: एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया

एक स्मार्टफोन में औसतन 0.034 ग्राम (34 मिलीग्राम) तक सोना हो सकता है। यदि एक सौ मोबाइल फोन हैं, तो इनसे लगभग 3.4 ग्राम सोना निकाला जा सकता है। हालांकि, यह प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है। इसके लिए विशेष ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग प्लांट्स की आवश्यकता होती है, जहां मोबाइल को मशीनों से तोड़कर इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स को अलग किया जाता है। इसके बाद, केमिकल प्रोसेस के माध्यम से धातुएं निकाली जाती हैं।

इन प्लांट्स में प्रोसेसर, मदरबोर्ड पर लगे चिप्स, सर्किट कनेक्टर्स, इंटरनल वायरिंग, सिम कार्ड स्लॉट और चार्जिंग प्वॉइंट पर धातुएं मिलती हैं। इस प्रक्रिया में न केवल तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है, बल्कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

राजस्थान में ई-वेस्ट प्रबंधन के भविष्य की संभावनाएँ

राजस्थान की सरकार द्वारा किए गए प्रयासों से ई-वेस्ट प्रबंधन के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद है। ई-वेस्ट की सही प्रबंधन नीति न केवल पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद करेगी, बल्कि यह राज्य की अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाएगी। रीसाइक्लिंग प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाली आय का उपयोग अन्य विकासात्मक योजनाओं में किया जा सकता है, जिससे राज्य के नागरिकों को भी लाभ होगा।

इस प्रकार, ई-वेस्ट प्रबंधन के प्रति जागरूकता बढ़ाना और इसके सही तरीके से निपटने की दिशा में कदम उठाना आवश्यक है। इसके लिए सरकार, नागरिक और उद्योगों को मिलकर काम करना होगा। अगर हम आज इस दिशा में ठोस कदम उठाते हैं, तो कल की पीढ़ी को एक बेहतर और स्वस्थ पर्यावरण मिल सकेगा।

राजस्थान समाचार हिंदी में

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