टीकमगढ़ में श्रीमद् भागवत कथा का भव्य समापन
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के सुभाष पुरम कॉलोनी स्थित शिव मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का समापन सोमवार को सुदामा चरित्र प्रसंग के साथ हुआ। इस विशेष अवसर पर बुंदेलखंड पीठाधीश्वर महंत सीताराम दास महाराज ने कथा का वर्णन किया। श्रद्धालुओं ने इस अवसर पर भक्ति भाव में नृत्य किया, जिससे वातावरण भक्ति और श्रद्धा से भरा रहा।
महंत सीताराम दास महाराज का प्रेरणादायक संदेश
महंत सीताराम दास महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि परमात्मा में आसक्ति मनुष्य को सांसारिक मोह माया से मुक्त करती है और जीव को भवबंधन से पार ले जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि परमात्मा बिना मांगे ही भक्तों को सब कुछ प्रदान कर देता है। इस दौरान उन्होंने भगवान द्वारिकाधीश और उनके परम भक्त सुदामा का प्रसंग सुनाकर भक्तों को प्रेरित किया।
सुदामा की तपस्या और भगवान की कृपा
महंत जी ने बताया कि सुदामा, जो साधनहीन थे, लेकिन भगवान में उनकी पूर्ण आसक्ति थी। वे भिक्षा में मिले भोजन से संतुष्ट रहकर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। कई बार तो उन्हें अपने परिवार को भूखा भी सोने देना पड़ता था। इस कठिनाई के बावजूद, उनका विश्वास हमेशा भगवान पर अडिग रहा।
पीठाधीश्वर महंत सीताराम दास महाराज कथावाचन करते हुए।
सुदामा की पत्नी का आग्रह और यात्रा
महंत जी ने आगे बताया कि एक बार सुदामा की पत्नी ने उन्हें द्वारिकाधीश के पास जाने के लिए विवश किया। मित्र के घर खाली हाथ न जाने के लिए, पत्नी ने पड़ोसियों से मांगकर दो मुट्ठी चावल एक पोटली में बांधकर दिए। हरिनाम स्मरण करते हुए, सुदामा ने कई दिनों की यात्रा की, जहां रास्ते में भगवान द्वारिकाधीश ने वेश बदलकर उन्हें सहायता की।
भगवान श्रीकृष्ण का सुदामा का स्वागत
द्वारिकापुरी पहुंचने पर भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा का स्वागत करते हुए भावविभोर हो गए। उन्होंने अपने अश्रुओं से सुदामा के पैर धोए और सुदामा की पोटली से दो मुट्ठी चावल अपने मुख में डालकर उन्हें दो लोको का ऐश्वर्य प्रदान किया। इस प्रसंग को सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए और उन्होंने भगवान की महिमा का गान किया।
धार्मिक अनुष्ठान का समापन
कथा आयोजकों ने बताया कि इस भव्य धार्मिक अनुष्ठान का समापन मंगलवार को कन्या भोज और भंडारे के साथ होगा। श्रद्धालुओं ने इस आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे समस्त वातावरण में भक्ति की लहर दौड़ गई।
कथा के अंत में श्रद्धालुओं ने एक-दूसरे के साथ प्रसाद बांटते हुए इस धार्मिक आयोजन की समाप्ति का जश्न मनाया। महंत सीताराम दास महाराज के प्रवचन और सुदामा के चरित्र ने सभी को एक नई ऊर्जा दी और भक्ति मार्ग पर चलने का संकल्प दिलाया।