दतिया में सरकारी अस्पताल में दवा लिखने की अनियमितता
मध्य प्रदेश के दतिया जिले में एक सरकारी अस्पताल में एक महिला मरीज को उपचार के दौरान एक गंभीर अनियमितता का सामना करना पड़ा। सरकारी अस्पताल में इलाज कराने आई इस महिला को मेडीकल कॉलेज के सह प्राध्यापक डॉक्टर ने सरकारी पर्चे पर ही महंगी ब्रांडेड दवाएं लिख दीं। इसके परिणामस्वरूप, मरीज के परिजनों को बाजार से करीब 4,848 रुपए की महंगी दवाएं खरीदनी पड़ीं। यह घटना सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त समस्याओं की ओर एक और इशारा करती है।
सरकारी अस्पतालों में जनरिक दवाएं लिखने के निर्देश
यह मामला तब उजागर हुआ जब महिला मरीज के पति, जो 29वीं बटालियन में पदस्थ हैं, ने दवा का बिल विभाग में पास कराने के लिए भेजा। जब यह बिल सिविल सर्जन डॉ. केसी राठौर के पास पहुंचा तो उन्होंने पाया कि दवाएं बाजार की ब्रांडेड थीं। उल्लेखनीय है कि सरकारी अस्पतालों में जनरिक दवा लिखने के स्पष्ट निर्देश पहले से ही लागू हैं, और ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
जांच में यह सामने आया कि मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के सह प्राध्यापक डॉ. प्रवीण टैगोर ने 8 सितंबर को महिला को महंगी ब्रांडेड दवाएं लिख दी थी। इस प्रकार की अनियमितता शासन के निर्देशों का उल्लंघन है। कलेक्टर स्वप्निल वानखड़े ने भी स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि सरकारी पर्ची पर केवल जनऔषधि या स्टॉक में उपलब्ध दवाएं ही लिखी जाएं।
अनियमितताओं के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश
डॉ. राठौर ने इस मामले में मेडिकल कॉलेज के डीन को पत्र लिखकर उचित कार्रवाई की अनुशंसा की है। उन्होंने इस मामले की जानकारी कलेक्टर, सीएमएचओ और क्षेत्रीय संचालक को भी दी है। उनका कहना है कि हमारे पास पर्याप्त दवाएं उपलब्ध हैं और बाजार से दवा लिखना बिल्कुल गलत है। इस तरह की अनियमितताओं के खिलाफ कार्रवाई करना आवश्यक है, ताकि मरीजों का भरोसा बना रहे और सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की विश्वसनीयता पर कोई प्रश्नचिन्ह न लगे।
राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति
मध्य प्रदेश में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति हमेशा से चर्चा का विषय रही है। कई बार ऐसी शिकायतें आती रही हैं कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा के लिए जरूरी दवाएं उपलब्ध नहीं होती, और मरीजों को महंगी ब्रांडेड दवाएं खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यह स्थिति न केवल मरीजों के लिए बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है।
सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय और संबंधित अधिकारी यदि समय पर कार्रवाई करें, तो ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं होंगी और मरीजों का विश्वास भी बना रहेगा। राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस मामले को गंभीरता से ले और सुनिश्चित करे कि सरकारी अस्पतालों में सभी मरीजों को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा मिल सके।
आगे की दिशा में कदम
सरकारी अस्पतालों में दवा लिखने की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए तकनीकी उपायों की आवश्यकता है। इसके लिए एक प्रभावी निगरानी तंत्र की स्थापना की जानी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी चिकित्सक दिशा-निर्देशों का पालन करें। जनऔषधि के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए जन जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए जा सकते हैं, ताकि लोग अपनी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति जागरूक रहें।
इस मामले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है। यदि उचित कदम नहीं उठाए गए, तो न केवल मरीजों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता भी दांव पर लगेगी।
सारांश में, दतिया के इस मामले ने सभी को यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता नहीं है। यह न केवल मरीजों के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए भी महत्वपूर्ण है।