विजयादशमी उत्सव एवं पथ संचलन का आयोजन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मारो मंडल ने विजयादशमी उत्सव एवं पथ संचलन का भव्य आयोजन गुरुवार को नगर में किया। इस आयोजन के मुख्य अतिथि भगवताचार्य पं. रमाकांत मिश्रा रहे, जबकि मुख्य वक्ता के रूप में जिला कार्यवाह गंगाधर यादव उपस्थित थे। पथ संचलन में लगभग 80 वयस्क एवं बाल स्वयंसेवक सहित संघ के अनुशांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। यह आयोजन समाज में एकता और समर्पण की भावना को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था।
संचलन का मार्ग और स्वागत
पथ संचलन की शुरुआत सरस्वती शिशु मंदिर परिसर से हुई और यह बस स्टैंड, राधाकृष्ण मंदिर चौक सहित नगर के विभिन्न वार्डों से होते हुए पुनः शिशु मंदिर प्रांगण में संपन्न हुआ। नगरवासियों ने पथ संचलन का जोरदार स्वागत किया, जिसमें पुष्प वर्षा, आतिशबाजी और आरती सजाकर सभी ने अपनी खुशी का इजहार किया। इस दौरान पूरे नगर में देशभक्ति और उत्साह का अद्भुत वातावरण बना रहा, जिससे सभी उपस्थित लोगों में एकजुटता का अनुभव हुआ।
संघ का योगदान और संदेश
मुख्य वक्ता गंगाधर यादव ने कार्यक्रम के दौरान संघ के शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ते कदमों का उल्लेख किया। उन्होंने समाज में ‘स्व’ का बोध, नागरिक कर्तव्य, कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता और पंच परिवर्तन के विषयों पर प्रकाश डाला। गंगाधर यादव ने बताया कि संघ का स्थापना काल से लेकर वर्तमान तक का उद्देश्य समाज के प्रत्येक वर्ग के बीच राष्ट्रीय भावना, अनुशासन और सेवा के संस्कार स्थापित करना है। उनके अनुसार, संघ ने हमेशा समाज के उत्थान और विकास के लिए कार्य किया है।
समाज में सेवा की भावना का प्रचार
गंगाधर यादव ने आगे कहा कि संघ का यह आयोजन केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि समाज में सेवा और समर्पण की भावना को बढ़ावा देने का एक प्रयास है। उन्होंने बताया कि संघ ने हमेशा से ही समाज में एकजुटता, भाईचारा और समर्पण के मूल्यों को स्थापित करने का कार्य किया है। इस प्रकार के आयोजनों से न केवल लोग एक-दूसरे के करीब आते हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का भी मार्ग प्रशस्त होता है।
नगरवासियों की प्रतिक्रिया
नगरवासियों ने इस आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से बच्चों और युवाओं में देशभक्ति की भावना और बढ़ती है। नगर के लोगों ने यह भी कहा कि इस तरह के उत्सवों का आयोजन समय-समय पर होना चाहिए ताकि समाज में एकता और सहयोग की भावना को बनाए रखा जा सके। विजयादशमी जैसे पर्वों का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, विजयादशमी उत्सव और पथ संचलन ने एक बार फिर से संघ की सामाजिक समर्पण और सेवा भावना को उजागर किया। ऐसे आयोजनों से न केवल समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, बल्कि यह हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का भी एहसास कराते हैं। नगरवासियों ने इस आयोजन को सफल बनाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और इसे यादगार बना दिया।