छत्तीसगढ़ में जूट की खेती को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल
छत्तीसगढ़ राज्य में जूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार और वैज्ञानिक संस्थानों ने मिलकर एक महत्वपूर्ण पहल की है। इस संदर्भ में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण सह वैज्ञानिक किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को जूट की उन्नत खेती और उत्पादन तकनीकों से अवगत कराना था। विशेषज्ञों ने किसानों को बताया कि धान की खेती पर निर्भर रहना अब उचित नहीं है, बल्कि जूट की खेती से किसानों को अतिरिक्त आमदनी का अवसर भी मिल सकता है।
जूट की खेती परियोजना का महत्व
यह प्रशिक्षण जूट की खेती परियोजना के अंतर्गत आयोजित किया गया, जिसे IBITF (इनोवेशन-बेस्ड इंटीग्रेटेड टेक्सस्टाइल फार्मिंग) द्वारा वित्तपोषित किया गया और IIT भिलाई के सहयोग से संपन्न हुआ। इस परियोजना का उद्देश्य किसानों को जूट की खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है, ताकि वे अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकें।
किसानों को जूट की उन्नत खेती के बारे में बताया गया।
वैज्ञानिकों का सुझाव: जूट खेती से किसानों की आमदनी बढ़ेगी
इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय जूट बोर्ड के वैज्ञानिक डॉ. नीलेन्दु भौमिक और तकनीकी सहायक ने जूट से यांत्रिक फाइबर निष्कर्षण (Mechanical Fiber Extraction) पर लेक्चर दिया। उन्होंने किसानों को ‘रिबनर मशीन’ का उपयोग कर दिखाया, जिसके माध्यम से जूट फाइबर निकालने की प्रक्रिया आसान और तेज़ हो जाती है। IIT भिलाई के निदेशक डॉ. राजीव प्रकाश ने बताया कि जूट जैसी रेशेदार फसलें न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी हैं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।
किसानों के लिए नई संभावनाएं
डॉ. राजीव प्रकाश ने किसानों से अपील की कि वे छत्तीसगढ़ में जूट की खेती को फिर से शुरू करें और इसे खरीफ के साथ-साथ ग्रीष्मकालीन फसल के रूप में अपनाएं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान संचालक डॉ. विवेक त्रिपाठी ने भी यही बात दोहराते हुए कहा कि किसानों को केवल धान पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
उन्होंने सुझाव दिया कि धान लगाने से पहले जूट की खेती करने से किसानों को अतिरिक्त आमदनी का अवसर मिलेगा। उनका मानना है कि जूट खेती से किसानों की पारिश्रमिकता बढ़ेगी और आजीविका के नए रास्ते खुलेंगे।
आधुनिक तकनीकों का उपयोग
सम्मेलन में कई शोधकर्ताओं ने जूट की उन्नत खेती पद्धतियों और तकनीकों पर अपने अनुभव साझा किए।
- डॉ. प्रज्ञा पांडे (जूट परियोजना की सह-अन्वेषक) ने जूट की उन्नत खेती पद्धतियों पर विस्तार से बताया।
- डॉ. अरुण उपाध्याय ने एंजाइमेटिक रेटिंग तकनीक पर प्रस्तुति दी, जिससे जूट फाइबर की गुणवत्ता का आकलन किया जा सकता है।
किसानों की सक्रिय भागीदारी
इस सम्मेलन में रायपुर और धमतरी जिले के 30 से अधिक किसान शामिल हुए। किसानों ने मशीन प्रदर्शन, जूट प्रसंस्करण और फाइबर गुणवत्ता परीक्षण को प्रत्यक्ष रूप से देखा और सीखा। वर्तमान खरीफ मौसम में धमतरी जिले में 4 एकड़ भूमि पर जूट की खेती की जा रही है। किसानों ने आगामी वर्ष में जूट की खेती का क्षेत्र बढ़ाने पर सहमति जताई।
पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए जूट खेती का महत्व
वैज्ञानिकों का मानना है कि जूट खेती से न केवल किसानों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि यह प्लास्टिक के विकल्प के रूप में एक टिकाऊ समाधान भी प्रदान करेगी। राज्य सरकार इस परियोजना को अधिक जिलों तक विस्तार देने की योजना पर काम कर रही है। इससे न केवल अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
इस पहल के माध्यम से छत्तीसगढ़ में जूट की खेती को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने की उम्मीद जताई जा रही है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और पर्यावरण की दिशा में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।