Bihar News: ‘Prasad’ कादीबिगहा मां काली का महाप्रसाद, नालंदा में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़, कहा- यहां आने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं



कादीबिगहा गांव का मां काली का प्राचीन मंदिर कादीबिगहा गांव का मां काली का प्राचीन मंदिर नालंदा जिले के कादीबिगहा गांव में स्थित मां काली का प्राचीन मंदिर सदियों से…

Bihar News: ‘Prasad’ कादीबिगहा मां काली का महाप्रसाद, नालंदा में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़, कहा- यहां आने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं

कादीबिगहा गांव का मां काली का प्राचीन मंदिर

कादीबिगहा गांव का मां काली का प्राचीन मंदिर

नालंदा जिले के कादीबिगहा गांव में स्थित मां काली का प्राचीन मंदिर सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर बिहारशरीफ से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो एक छोटे से गांव में बसा हुआ है। यहां मां काली की अलौकिक कृपा और चमत्कारों की अनगिनत कहानियां प्रचलित हैं। विशेष रूप से महाअष्टमी के अवसर पर इस मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो अपनी आस्था के साथ मां के दरबार में आते हैं।

कैसे पहुंचे कादीबिगहा गांव

कादीबिगहा गांव तक पहुंचना बहुत आसान है। डेंटल कॉलेज के पास भागनबिगहा बाजार से आगे बढ़ते हुए, एनएच 20 से जुड़े लिंक रोड पर लगभग 2 किलोमीटर की दूरी तय करने पर आप इस गांव में पहुंच सकते हैं। यह स्थान न सिर्फ बिहारशरीफ, बल्कि आसपास के कई प्रखंडों के लिए भी आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है।

खाली झोली भरती हैं मां काली

गांव की श्रद्धालुओं का मानना है कि मां काली की कृपा असीम है। अर्पणा, तनीषा और अन्य भक्तों का कहना है कि जो भी सच्चे मन से मां के दरबार में आता है, उसकी खाली झोली माता रानी अवश्य भरती हैं। यहां की अनूठी परंपरा के अनुसार, जब किसी युवा को नौकरी मिलती है, तो वह मां के चरणों में आभार प्रकट करने के लिए अवश्य आता है।

मां काली की प्रसिद्धि

मां काली की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है। गांव के लोग बताते हैं कि मां गलती करने वालों को तुरंत दंड देती हैं, लेकिन सच्चे मन से क्षमा याचना करने पर माफ भी कर देती हैं। विपदा के समय मां गांववालों की रक्षा करती हैं और उन पर सदैव अपना आशीर्वाद बरसाती हैं। यही कारण है कि लोग यहां आकर मां के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

सामूहिक भावना और सद्भाव का प्रतीक

कादीबिगहा गांव में छोटे-बड़े सभी लोग मिल-जुलकर रहते हैं। यहां किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। मंदिर की देखरेख के लिए गांववालों ने मां महाकाली क्लब का गठन किया है, जिसका उद्देश्य गांव के तालाब के पास मां महाकाली का एक और भव्य मंदिर का निर्माण करना है। यह एक सामूहिक प्रयास है, जिसमें सभी भक्तों का सहयोग शामिल है।

पुरोहित की अदला-बदली की परंपरा

मंदिर की एक विशेष परंपरा यह है कि यहां के पुरोहित हर साल बदल जाते हैं। गांव में कई ब्राह्मण परिवार निवास करते हैं, और आपसी सहयोग एवं समानता की भावना के तहत हर साल अलग-अलग परिवार के ब्राह्मण मंदिर के पुरोहित बनते हैं। यह परंपरा यह सुनिश्चित करती है कि सभी को यह अवसर मिल सके। विशेष रूप से, शंकर मिस्त्री उर्फ भगत जी हमेशा मां की सेवा में तत्पर रहते हैं और अपनी पहली सैलरी मां के चरणों में समर्पित करते हैं।

नवरात्र के दौरान मां का शृंगार

नवरात्र के दौरान मां की स्थापित प्रतिमा का शृंगार स्वर्ण आभूषणों से किया जाता है। यह परंपरा काफी पुरानी है, और श्रद्धालु अपनी आस्था के अनुसार मां को आभूषण अर्पित करते हैं। मां को 51 साड़ियां पहनाई जाती हैं, जिससे उनकी मोहिनी सूरत का दर्शन कर भक्तजन आह्लादित हो उठते हैं।

अनूठी पूजा परंपरा

अष्टमी के दिन मां काली की प्रतिमा मंदिर में स्थापित की जाती है, और यह प्रतिमा दो दिन तक यहां विराजमान रहती है। दशमी के दिन, प्रतिमा को गांव के बगीचे में रखा जाता है, जहां भव्य मेला लगता है। माता रानी के दरबार में पशु बलि पर पूर्णतः पाबंदी है। केवल भुआ (एक प्रकार का फल) की बलि दी जाती है, और एकादशी को प्रतिमा का विसर्जन गांव के तालाब में किया जाता है।

तालाब की पवित्रता

जिस तालाब में प्रतिमा का विसर्जन होता है, वह भी मां की कृपा से पवित्र माना जाता है। इस तालाब में कोई मवेशी को स्नान नहीं कराता, और यहां की मान्यता है कि तालाब के आसपास रखे सामान को नुकसान पहुंचाने या चुराने की चेष्टा करने पर माता रानी दंड देती हैं।

गांव की अद्भुत परंपराएं

गांव के मोनू पांडेय, अमरेंद्र पांडेय और अन्य ग्रामीणों के अनुसार मां काली से कई अनोखे संयोग जुड़े हुए हैं। सैकड़ों सालों से बिहारशरीफ के पुलपर निवासी मूर्तिकार के वंशज ही मां की प्रतिमा बनाते आ रहे हैं। सप्तमी के दिन प्रतिमा को लाने के लिए कादीबिगहा और आसपास के दर्जनों गांवों के लोग बिहारशरीफ जाते हैं।

भभूत के लिए भक्तों की लंबी कतार

इस बार भी अष्टमी के दिन मां महाकाली का प्रसाद स्वरूप मिलने वाले भभूत को लेने के लिए भक्तों की लंबी कतार लगी। घंटों अपनी बारी का इंतजार करते हुए महिला एवं पुरुष श्रद्धालु धैर्य पूर्वक खड़े रहे। भक्तों का कहना है कि मां का यह भभूत चमत्कारी है और इसे घर में रखने से सुख-समृद्धि आती है।

मां काली का मंदिर: आस्था और सामाजिक समरसता का स्थान

मां काली का यह प्राचीन मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि सामाजिक समरसता और सामूहिक भावना का भी प्रतीक है। यहां की परंपराएं यह दर्शाती हैं कि कैसे एक छोटा सा गांव आपसी सहयोग और आस्था के बल पर अपनी अनूठी पहचान बनाए हुए हैं।

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