“Lal Durga: मुंगेर में 1947 से स्थापित, पहले पाकिस्तान-बांग्लादेश में होती थी पूजा”



मुंगेर में शारदीय नवरात्र का उत्सव: देवी दुर्गा के दर्शन का दिव्य अवसर शारदीय नवरात्र की सप्तमी तिथि पर मुंगेर के सभी दुर्गा मंदिरों के पट श्रद्धालुओं के लिए खोल…

“Lal Durga: मुंगेर में 1947 से स्थापित, पहले पाकिस्तान-बांग्लादेश में होती थी पूजा”

मुंगेर में शारदीय नवरात्र का उत्सव: देवी दुर्गा के दर्शन का दिव्य अवसर

शारदीय नवरात्र की सप्तमी तिथि पर मुंगेर के सभी दुर्गा मंदिरों के पट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। इसके बाद से ही यहां प्रतिमा दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ने लगी है। दुर्गा पूजा के इस पावन अवसर पर भक्तों में पूजा-अर्चना और प्रतिमा दर्शन को लेकर विशेष उत्साह देखने को मिल रहा है। श्रद्धालु अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ मां दुर्गा की आराधना कर रहे हैं।

जिला मुख्यालय स्थित रायसर मोहल्ले का लाल दुर्गा मंदिर इस बार भी जिलेवासियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां 1947 से लगातार बंगाली समाज द्वारा मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। इस मंदिर की प्रतिमा हर साल की तरह इस बार भी सिंदूर की तरह लाल है, जो इसकी सबसे बड़ी विशेषता मानी जाती है।

बंगाली पद्धति से पूजा और अनुष्ठान

लाल दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा की पूजा पूरी तरह से बंगाली पद्धति से की जाती है। इस पद्धति में बंगाली समाज की महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जो प्रतिमा को सजाने और पूरे नवरात्र के दौरान पूजा-अर्चना में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। पूजा अनुष्ठान का कार्य भी बंगाली समाज के पंडितों द्वारा संपन्न किया जाता है।

जहां मुंगेर के अधिकांश दुर्गा पूजा स्थलों पर सप्तमी तिथि को बड़ी दुर्गा की स्थापना की जाती है, वहीं लाल दुर्गा की स्थापना एक दिन पहले षष्ठी को ही की जाती है। इसका मुख्य कारण यहां की बंगाली रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा-अर्चना का संपादन होना है। प्रतिमा का विसर्जन दशमी तिथि को रावण वध के बाद किया जाता है।

सिंदूर की होली और विदाई की परंपरा

प्रतिमा विसर्जन से पहले मां दुर्गा की विदाई को पूरे रीति-रिवाज के साथ किया जाता है। इस विशेष अवसर पर बंगाली समाज की महिलाएं एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं, जो इस परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है।

लाल दुर्गा मंदिर की कमेटी की महिला सदस्यों ने बताया कि उनके पूर्वज पहले बांग्लादेश में रहते थे और वहां लाल दुर्गा की पूजा अर्चना होती थी। जब बांग्लादेश से उन्हें भगाया गया, तब उनके वंशज विभिन्न स्थानों पर जाकर बस गए। इनमें से कुछ परिवार मुंगेर में आकर बसे और 1947 से यहां लाल दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जा रही है।

विशेष रूप से सजाई गई प्रतिमा

लाल दुर्गा की प्रतिमा को हर साल सिंदूर की तरह लाल रंग से सजाया जाता है, क्योंकि मंदिर की सदस्य सोनाली ने बताया कि मां दुर्गा ने उन्हें सपने में यह रूप दिखाया था। यही कारण है कि इस दुर्गा को मुंगेर में लाल दुर्गा के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, यहां गणेश और कार्तिक भगवान की प्रतिमाओं को भी उल्टा रखा जाता है, जो इस मंदिर की एक और विशेषता है।

मंदिर में गणेश और कार्तिक की प्रतिमाओं को अलग-अलग स्थान पर रखा जाता है। जहां मां लक्ष्मी की प्रतिमा होती है, वहां कार्तिक महाराज की प्रतिमा रखी जाती है। वहीं, दूसरी ओर, माता सरस्वती की प्रतिमा के पास गणेश की प्रतिमा होती है। यह व्यवस्था भी उस सपने की याद दिलाती है, जिसमें देवी ने इन प्रतिमाओं को अलग-अलग रूप में दिखाया था।

धुनों में बजी पूजा की धूम

लाल दुर्गा मंदिर में सुबह और शाम ढोल-नगाड़े की धुन पर मां दुर्गा की पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है। इस पूजा में महिलाएं घंटा और शंख बजाकर मां दुर्गा की आराधना करती हैं। इस मंदिर में बलिप्रथा नहीं होती, क्योंकि यह माता वैष्णवी के स्वरूप में है, जिसके कारण यहां खून की बलि नहीं दी जाती है।

समाज में इस प्रकार की पूजा और परंपराएं न केवल धार्मिक आस्था को बढ़ावा देती हैं, बल्कि यह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच एकता और सामंजस्य का भी प्रतीक होती हैं। मुंगेर में लाल दुर्गा की पूजा ने इसे एक अद्वितीय स्थान देकर इसे श्रद्धालुओं का प्रिय स्थल बना दिया है।

इस नवरात्रि, मुंगेर के श्रद्धालु एक बार फिर से मां दुर्गा की भक्ति में लीन होकर इस पावन पर्व का आनंद उठा रहे हैं।

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