राजस्थान में अस्पताल अग्निकांड: प्रशासन की लापरवाही का मामला
राजस्थान के जयपुर स्थित एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में रविवार को हुए अग्निकांड ने कई परिवारों को बर्बाद कर दिया। इस हादसे में अस्पताल स्टाफ की लापरवाही से स्थिति बेकाबू हो गई, जिसके परिणामस्वरूप कई मरीजों की जान चली गई। इस घटना के बाद अस्पताल प्रशासन ने मृतकों की संख्या को छिपाने का प्रयास किया, जिससे लोगों में गहरा रोष उत्पन्न हुआ है।
हादसे के प्रत्यक्षदर्शियों का आरोप है कि अग्निकांड में जान गंवाने वाले मरीजों का सही आंकड़ा छुपाने के लिए अस्पताल के कर्मचारी लगातार प्रयासरत रहे। इस मामले में रायसर, आंधी (जयपुर) निवासी रंजीत ने कहा, “मैंने अपने भाई को तीन घंटे तक खोजा। अस्पताल का स्टाफ बार-बार यही कहता रहा कि उनका इलाज चल रहा है। जब एक विधायक मौके पर पहुंचे, तब मुझे पता चला कि मेरा भाई पहली मंजिल पर आईसीयू में भर्ती था। लेकिन सच यह था कि वहां इलाज नहीं हो रहा था, बल्कि लाशें छिपाई गई थीं।”
परिवारों का दर्द: लापरवाह स्टाफ और छुपी हुई लाशें
यहां तक कि रुक्मणि कौर के बेटों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। उनका कहना है कि आग लगने के तुरंत बाद स्टाफ ने उन्हें वहां से भगा दिया। “एक घंटे तक हमें अस्पताल में घुसने नहीं दिया गया। जब हम बचाव दल के साथ अंदर पहुंचे, तो हमें बताया गया कि मां को पहले तल पर इलाज के लिए ले जाया गया है,” जोगेंद्र और शेरू ने बताया। जब वे वहां पहुंचे, तो उनकी मां का शरीर ठंडा पड़ चुका था और उनकी आंखें सफेद हो चुकी थीं।
इस बीच, अस्पताल में कई अन्य शव भी पड़े हुए थे, लेकिन स्टाफ ने किसी भी तरह की जानकारी देने से मना कर दिया। इस घटना ने न केवल परिवारों को बल्कि पूरे राज्य को हिलाकर रख दिया है।
नेता प्रतिपक्ष का आरोप: सरकार छिपा रही है मौतों की जानकारी
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में हुई मौतों को जानबूझकर छुपाया जा रहा है। जिस आईसीयू में मौतें हुईं, उसमें 11 मरीज मौजूद थे। जिंदा बचे लोगों की जानकारी भी नहीं दी जा रही है।” उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी अस्पतालों में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है और ब्लैकलिस्टेड कंपनियों से कफ सिरप खरीदे जा रहे हैं, जिसके कारण ये हादसे हो रहे हैं।
मानवाधिकार आयोग का संज्ञान: जवाब तलब
राज्य मानवाधिकार आयोग ने भी इस अग्निकांड पर संज्ञान लिया है। आयोग ने एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक, प्राचार्य, राज्य के मुख्य चिकित्सा सचिव, जिला मजिस्ट्रेट, जयपुर पुलिस कमिश्नर और सीएमएचओ से जवाब मांगा है। आयोग का मानना है कि यह मामला गंभीर है और इसमें लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा मिलनी चाहिए।
इस घटनाक्रम ने न केवल चिकित्सा प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है बल्कि यह भी दर्शाया है कि कैसे प्रशासनिक लापरवाही के कारण मानव जीवन खतरे में पड़ जाता है। लोगों की जान की कीमत पर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
समाज की जिम्मेदारी: जागरूकता और बदलाव की आवश्यकता
इस घटना ने यह भी साबित किया है कि समाज को स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए एकजुट होना होगा। लोगों को जागरूक रहना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। अस्पतालों में लापरवाही को रोकने के लिए सख्त कानूनों की आवश्यकता है, ताकि इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सके।
अंत में, यह जरूरी है कि हम सभी इस मुद्दे पर ध्यान दें और सरकार से मांग करें कि वह इस मामले में कठोर कदम उठाए। मरीजों की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए और अस्पतालों में उचित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी दुखद घटनाएं दोबारा न हों।