28वें लोकरंग महोत्सव का आठवां दिन: लोक संस्कृति का अद्भुत प्रदर्शन
राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए 28वें लोकरंग महोत्सव का आठवां दिन जयपुर के जवाहर कला केंद्र में एक विशेष अनुभव लेकर आया। इस महोत्सव में विभिन्न राज्यों से आए लोक कलाकारों ने अपने अद्वितीय नृत्य और संगीत के माध्यम से भारत की लोक संस्कृति की विविधता को दर्शाया। महोत्सव का यह दिन दर्शकों के लिए एक यादगार अनुभव साबित हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान के भवरु खां लंगा और उनके समूह ने सुरीले गायन के साथ की। उन्होंने अपने विशेष संगीत वाद्ययंत्रों जैसे कि सिंधी सारंगी, खड़ताल, अलगोजा और मोरचंग की तानों पर “हो भला रे, जियो भला रे” जैसे लोक गीत प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद, उन्होंने “सुंदर गोरी” नामक अलंकृत गीत की प्रस्तुति से माहौल को रूमानी बना दिया।
हरियाणा और राजस्थान की लोक नृत्य प्रस्तुतियाँ
हरियाणा से आए कलाकारों ने ‘घूमर’ नृत्य के माध्यम से अपनी संस्कृति का अद्भुत प्रदर्शन किया। उन्होंने “ननदी के बीरा” गीत पर हरियाणवी पोशाक में नृत्य किया, जिसमें माथे पर बोरला और गले में कंठी पहने हुए थे। यह प्रस्तुति दर्शकों को हरियाणा की समृद्ध संस्कृति से परिचित कराने में सफल रही।
राजस्थान के डीग से आए कलाकारों ने श्री राधा रमण जी के जन्मोत्सव पर पारंपरिक लोक नृत्य ‘चरकुला’ प्रस्तुत किया। इस नृत्य में ग्वाले, गोपी और राधा-कृष्ण का नृत्य किया गया, जबकि मंच पर 108 दीपों से सजावट की गई थी। इस दृश्य ने दर्शकों को राधा जन्म की महाआरती का अद्भुत अनुभव प्रदान किया।
मध्यप्रदेश और तमिलनाडु की रंगीन प्रस्तुतियाँ
मध्यप्रदेश के कलाकारों ने ‘गणगौर’ नृत्य के माध्यम से दर्शकों का दिल जीत लिया। इस नृत्य में सभी महिला कलाकारों ने भगवान शिव और पार्वती की आराधना करते हुए गणगौर बनाए। यह नृत्य खासकर अच्छे वर को पाने के लिए किया जाता है।
तमिलनाडु से आए कलाकारों ने ‘मरुद्धम कलाई कजुहू’ में पूर्वी तमिलनाडु की आदिवासी नृत्य शैली का प्रदर्शन किया। इस नृत्य में दुर्गा देवी और काली माता की उपासना का दृश्य प्रस्तुत किया गया, जो दर्शकों को एक अध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है।
आदिवासी लोक पर्व और नृत्य परंपरा
मध्यप्रदेश के कलाकारों ने ‘करमा’ नृत्य में “रेवा रे नर्मदा माई, रेवा रे नर्मता” जैसे गीतों पर बैगा करमा जनजाति के नृत्य का प्रदर्शन किया। यह नृत्य दशहरा चांद की फसल के साथ मनाया जाता है, जो नई फसल की खुशी और समृद्धि का प्रतीक है।
इस कार्यक्रम में खाटू सपेरा और उनके समूह ने ‘कालबेलिया’ नृत्य की प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह लिया। उनकी अनूठी शैली और गतिशील कदमों ने इस अद्वितीय कला को जीवंत कर दिया। शाम की आखिरी प्रस्तुति में तमिलनाडु के कलाकारों ने ‘महेश्वरन थपट्टा कलाई’ नृत्य प्रस्तुत किया, जो आराध्य को समर्पित था। 15 कलाकारों के इस समूह ने मंच पर एक अद्भुत अंत प्रस्तुत किया।
संस्कृति का संगम: लोकरंग महोत्सव का महत्व
28वें लोकरंग महोत्सव का यह दिन न केवल लोक कला की विविधता को प्रदर्शित करता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति के समृद्ध इतिहास और परंपराओं का भी प्रतीक है। इस प्रकार के महोत्सवों का आयोजन न केवल कलाकारों को एक मंच प्रदान करता है, बल्कि यह दर्शकों को भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ता है। इस महोत्सव ने सभी को एक साथ लाकर भारतीय लोक संस्कृति की धरोहर को संजोने का कार्य किया है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
इस महोत्सव के माध्यम से दर्शकों ने विभिन्न राज्यों की संस्कृति, परंपराओं और लोक कलाओं का अनुभव किया, जो कि भारतीय एकता और विविधता का प्रतीक है। यह महोत्सव न केवल एक सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि यह हमारे समाज की एकता और विविधता को भी दर्शाता है।