रक्षा मंत्री की महत्वपूर्ण बातें
नई दिल्ली: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को नई दिल्ली में आयोजित त्रि-सेवा संगोष्ठी में सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भूमि, समुद्र और आकाश के बीच संबंध बढ़ते जा रहे हैं, और इस बात की आवश्यकता है कि तीनों सेनाएं एक साथ मिलकर काम करें। सिंह ने बताया कि युद्ध की बदलती प्रकृति के कारण संचालन, प्रौद्योगिकी और निर्णय लेने में एकजुटता की आवश्यकता है।
समन्वय की आवश्यकता
उन्होंने कहा, “हमारा विश्व तेजी से बदल रहा है। पहले, एक सेवा द्वारा प्राप्त अनुभव और ज्ञान उस विशेष बल तक सीमित रहता था। आज भूमि, समुद्र और वायु परस्पर जुड़े हुए हैं। यदि हम चाहें तो हम किसी भी चुनौती का सामना एक साथ कर सकते हैं।” यह बातें उन्होंने ‘नेशनल कांक्लेव 2025’ के दौरान ज़ोरावर ऑडिटोरियम, मानेकशॉ सेंटर में कही।
सफलता के उदाहरण
सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मिशन ने संयुक्त योजना की प्रभावशीलता को दर्शाया। उन्होंने कहा, “हम सफल रहे क्योंकि तीनों सेनाएं एक साथ काम कर रही थीं। एक वास्तविक समय का परिचालन चित्र तैयार किया गया, जिसने कमांडरों को मोर्चे पर त्वरित और सटीक निर्णय लेने में सक्षम बनाया।”
प्रौद्योगिकी का महत्व
रक्षा मंत्री ने प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि प्रत्येक सेवा ने वर्षों में अपनी-अपनी प्रणालियाँ विकसित की हैं, लेकिन अब एकीकरण की आवश्यकता है। “यदि हम प्रौद्योगिकी में एक साथ नहीं हैं, तो निर्णय लेने में नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। समन्वय सुगम होता है, और जब एक सैनिक जानता है कि प्रौद्योगिकी उसका समर्थन कर रही है, तो उसकी आत्मविश्वास बढ़ता है। अन्यथा, अंतर उत्पन्न होंगे और हैकरों के लिए हस्तक्षेप करना आसान होगा,” उन्होंने चेतावनी दी।
विशिष्टताओं का सम्मान
रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि एकीकरण का अर्थ प्रत्येक बल की विशिष्ट ताकतों को मिटाना नहीं है। उन्होंने कहा, “तीनों बलों के अपने अलग-अलग चुनौतियाँ हैं। एक ओर अत्यधिक गर्मी हो सकती है, तो दूसरी ओर ठंडक। सभी सेवाओं में समान प्रक्रियाएँ लागू करना व्यावहारिक नहीं होगा। हमें एक ऐसा ढांचा तैयार करना चाहिए जहाँ समन्वय बढ़े, जबकि विशिष्टता को बनाए रखा जाए।”
संयुक्तता की चुनौतियाँ
सिंह ने संयुक्तता को एक आवश्यकता और चुनौती दोनों बताते हुए कहा कि इसके लिए केवल नीतिगत बदलाव से अधिक की आवश्यकता है। “जब हम संयुक्तता की ओर बढ़ते हैं, तो स्पष्ट है कि नई चुनौतियाँ उत्पन्न होंगी। यह केवल प्रक्रियाओं को बदलने की बात नहीं है, बल्कि मनोवृत्तियों को बदलने की भी है। प्रत्येक सेवा को अपने बल की परंपराओं और विरासत का सम्मान करना चाहिए, जबकि हम समन्वय में काम करते हैं,” उन्होंने कहा।
भविष्य की दिशा
रक्षा मंत्री के इस संबोधन ने स्पष्ट किया कि भारतीय सशस्त्र बलों में एकीकरण और समन्वय की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इस दिशा में आगे बढ़ने से न केवल सुरक्षा में वृद्धि होगी, बल्कि यह भारत की शक्ति को भी मजबूत करेगा। इस प्रकार की सकारात्मक सोच और संयुक्त प्रयासों से भारत अपने राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों को हासिल कर सकेगा।