आरबीआई का नया प्रस्ताव: बैंकिंग क्षेत्र में सख्त नियम लागू
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को एक मसौदा परिपत्र जारी किया है, जिसमें बैंकों के लिए कुछ नए वित्तीय नियमों का प्रस्ताव किया गया है। इस प्रस्ताव के अनुसार, बैंकों के कुल प्रत्यक्ष पूंजी बाजार और अधिग्रहण वित्तपोषण के उपायों को उनकी टियर 1 पूंजी के **20%** से अधिक नहीं होना चाहिए। इस कदम का उद्देश्य बैंकों की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना और उन्हें अधिक जिम्मेदारी से उधार देने के लिए प्रेरित करना है।
आरबीआई ने यह भी प्रस्तावित किया है कि बैंकों का पूंजी बाजार में कुल जोखिम **40%** से अधिक नहीं होना चाहिए। टियर 1 पूंजी वह उच्चतम गुणवत्ता वाली पूंजी होती है, जिसमें शेयर, संचित लाभ और कुछ ऐसे उपकरण शामिल होते हैं जो हानियों को अवशोषित कर सकते हैं। यह नियम बैंकों की वित्तीय सुदृढ़ता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, ताकि वे संभावित आर्थिक संकटों का सामना कर सकें।
बैंकों के लिए अधिग्रहण वित्तपोषण की सीमाएं
इस महीने की शुरुआत में, आरबीआई ने बैंकों को अधिग्रहणों के वित्तपोषण की अनुमति दी थी और प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्तावों (आईपीओ) के लिए शेयर खरीदने के लिए ऋण की सीमा बढ़ा दी थी। यह कदम भारत की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में बैंकिंग ऋण को प्रोत्साहित करने के लिए उठाए गए उपायों के तहत है। अब, आरबीआई ने अधिग्रहण वित्तपोषण के लिए बैंकों के कुल जोखिम को उनकी टियर 1 पूंजी का **10%** से अधिक नहीं होने का प्रस्ताव रखा है।
आरबीआई के प्रस्तावित नियमों के अनुसार, बैंकों को अधिग्रहण के सौदे के मूल्य का अधिकतम **70%** वित्तपोषण करने की अनुमति होगी, जबकि शेष **30%** का वित्तपोषण अधिग्रहण करने वाली कंपनी द्वारा किया जाना चाहिए। यह नियम यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि अधिग्रहण में भाग लेने वाली कंपनियां वित्तीय रूप से स्थिर और सक्षम हों।
लाभदायक कंपनियों को प्राथमिकता दी जाएगी
आरबीआई ने यह भी स्पष्ट किया है कि वाणिज्यिक बैंक अधिग्रहण वित्तपोषण केवल उन सूचीबद्ध कंपनियों को प्रदान कर सकते हैं, जिनका नेट वर्थ संतोषजनक हो और जो पिछले तीन वर्षों से लाभ में रही हों। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंक उन कंपनियों को वित्तपोषण प्रदान करें, जो आर्थिक रूप से स्थिर हैं और जिनके अधिग्रहण से बैंकों को कोई जोखिम न हो।
इन नए नियमों का उद्देश्य न केवल बैंकों की जोखिम प्रबंधन क्षमताओं को बढ़ाना है, बल्कि साथ ही साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाना है। बैंकिंग क्षेत्र की स्थिरता से न केवल बैंकों की स्थिति मजबूत होती है, बल्कि यह पूरे वित्तीय बाजारों को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
निष्कर्ष
आरबीआई के इन प्रस्तावों से यह स्पष्ट होता है कि वह बैंकों को अधिक जिम्मेदारी से उधार देने के लिए प्रेरित कर रहा है। बैंकों के लिए वित्तीय स्थिरता और जोखिम प्रबंधन को प्राथमिकता देने से न केवल बैंकिंग क्षेत्र में सुधार होगा, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करेगा। जैसे-जैसे ये नियम लागू होते हैं, हमें देखना होगा कि इनका वास्तविक प्रभाव क्या होता है और क्या ये बैंकों को अपने वित्तीय प्रदर्शन में सुधार करने में मदद करते हैं।
- बैंकों के कुल पूंजी बाजार जोखिम को **40%** तक सीमित किया जाएगा।
- अधिग्रहण वित्तपोषण के लिए अधिकतम जोखिम **10%** होगा।
- सौदे का **70%** तक वित्तपोषण बैंकों द्वारा किया जा सकेगा।
- केवल लाभदायक और वित्तीय रूप से स्थिर कंपनियों को ही अधिग्रहण वित्तपोषण मिलेगा।























