वाराणसी की गैंगस्टर कोर्ट ने 29 साल बाद सुनाया फैसला
वाराणसी की गैंगस्टर कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जिसमें मुंबई पुलिस की मदद से गिरफ्तार किए गए **50 हजार के इनामिया अपराधी** कल्लू सिंह उर्फ त्रिभुवन सिंह को सबूतों और गवाहों के अभाव में बरी कर दिया गया। इस मामले का फैसला 29 साल बाद आया है, लेकिन पुलिस की चार्जशीट भी इस केस में कोई खास प्रभाव नहीं डाल सकी। इस फैसले ने अभियोजन पक्ष को भी निराश किया है, क्योंकि इतने लंबे समय बाद भी न्याय की प्रक्रिया में कोई ठोस परिणाम नहीं आया।
इस मामले के संदर्भ में बताया गया है कि आरोपी का साथी बालिंद्र सिंह कुछ साल पहले पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। भगौतीपुतर, थाना लंका निवासी त्रिभुवन को मुंबई में पुलिस ने कई दिनों की मेहनत के बाद गिरफ्तार किया था। अदालत में बचाव पक्ष की ओर से वकील शशिकांत राय, चुन्ना राय, विपिन शर्मा और बृजेश सिंह ने अपना पक्ष रखा। हालांकि, पीड़ित ने उच्च अदालत में अपील करने की बात कही है, जिससे मामला और भी जटिल हो गया है।
विशेष न्यायाधीश का फैसला और केस का विवरण
विशेष न्यायाधीश गैंगस्टर एक्ट सुशील कुमार खरवार की अदालत में मंगलवार को 29 वर्षों से लंबित इस केस का फैसला सुनाया गया। फाइनल जिरह में अभियोजन पक्ष ने बताया कि व्यापारी वादी माया राम उर्फ मयालू ने **19 अप्रैल 1997** को लंका थाने में जानलेवा हमले और लूट के प्रयास का केस दर्ज कराया था। इस प्राथमिकी में बताया गया कि वह अपने साथी हीरालाल के साथ साइकिल से गुड़ खरीदकर अपने घर लौट रहे थे।
घटना **17 अप्रैल 1997** की है, जब सुबह लगभग **7:15 बजे** गंगाराम क्लिनिक के पास बाइक सवार आरोपियों ने उन पर जानलेवा हमला किया। हमलावरों ने कई गोलियां चलाईं, जिसमें से एक गोली माया राम की बाईं जांघ में लगी और वह गिर पड़े। हमलावरों में शामिल दयाराम उर्फ गोले के अतिरिक्त अन्य दो अभियुक्तों को वह अंधेरे के कारण पहचान नहीं सके। इस मामले में पुलिस ने दयाराम को नामजद करते हुए दो अन्य अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया।
पुलिस की जांच और आरोपियों की गिरफ्तारी
पुलिस ने मामले की जांच शुरू की और इसमें कल्लू सिंह उर्फ त्रिभुवन सिंह और उसके साथी बालिंद्र सिंह का नाम सामने आया। दोनों आरोपियों ने सूरत और फिर मुंबई में छिपने का प्रयास किया। हालांकि, बालिंद्र सिंह को चंदौली में पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया। इसके बाद, कल्लू सिंह उर्फ त्रिभुवन सिंह फरार रहा और झोपड़पट्टी में ठेल लगाकर जीवन यापन करता रहा। उसके ऊपर भी **50 हजार का इनाम** घोषित किया गया था।
मुंबई में एक अन्य मामले में गिरफ्तारी के बाद पुलिस को पता चला कि वह वाराणसी के लंका थाने में जानलेवा हमले के एक मामले में वांछित है। लंका पुलिस ने इस मामले में आरोपपत्र दाखिल किया और सुनवाई शुरू की, लेकिन बचाव पक्ष के तर्कों के आगे अभियोजन का कोई भी तर्क सफल नहीं हो पाया और कल्लू सिंह को दोषमुक्त कर दिया गया। इस फैसले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि न्याय की प्रक्रिया में कई बार लंबा समय लग सकता है, और कई बार सबूतों का अभाव भी न्याय के रास्ते में बाधा डाल सकता है।
न्याय के प्रति विश्वास और आगे की कार्रवाई
इस मामले में पीड़ित माया राम ने उच्च न्यायालय में अपील करने का निर्णय लिया है, जिससे यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। न्याय के प्रति विश्वास बनाए रखना जरूरी है, खासकर जब इतने लंबे समय के बाद भी न्याय की प्रक्रिया में इतनी बाधाएं आई हैं। यह घटना यह दर्शाती है कि किस प्रकार से न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, ताकि पीड़ितों को समय पर न्याय मिल सके और ऐसे मामलों में ठोस सबूतों के आधार पर निर्णय लिए जा सकें।
हालांकि इस मामले में कल्लू सिंह को बरी कर दिया गया है, लेकिन इससे यह संकेत मिलता है कि अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस को और भी सख्त कदम उठाने की जरूरत है। विशेष रूप से, ऐसे मामलों में जहां अपराधी लंबे समय तक फरार रहते हैं, उन्हें पकड़ने के लिए और भी प्रभावी रणनीतियों की आवश्यकता है।