उत्तराखंड में धौली गंगा नदी की कृत्रिम झील का मामला: प्रशासन की सक्रियता
संवाद सहयोगी जागरण, गोपेश्वर। उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ विकासखंड में स्थित नीति घाटी के पास धौली गंगा नदी पर बनी कृत्रिम झील एक बार फिर से चर्चा में है। हाल ही में वैज्ञानिकों की चिंता के बाद, जिला प्रशासन ने इस मामले में सक्रियता दिखाई है। उपजिलाधिकारी के नेतृत्व में एक विशेषज्ञों की टीम ने मौके का निरीक्षण कर जल प्रवाह की निकासी के लिए मलबा हटाने का कार्य शुरू कर दिया है।
यह महत्वपूर्ण कदम तब उठाया गया जब 31 अगस्त की रात को एक अचानक आई बारिश के कारण बादल फटने से तमक नाले में मलबा आ गया था, जिससे धौली गंगा का जल प्रवाह बाधित हो गया था। भारतीय सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने इस मलबे को हटाकर जल प्रवाह को सुचारू किया था। इस प्राकृतिक आपदा के कारण मलारी नीती हाइवे पर एक पुल भी बह गया था, जिससे भारत-चीन सीमा से जुड़ने वाला एकमात्र रास्ता बंद हो गया। प्रशासन ने तत्परता दिखाते हुए दो दिनों में अस्थाई सड़क बनाकर यातायात को बहाल किया था।
स्थानीय अधिकारियों की सक्रियता और झील की निगरानी
झील के आकार में वृद्धि की जानकारी मिलने के बाद, जिलाधिकारी गौरव कुमार ने तुरंत अधिकारियों को घटनास्थल पर भेजकर झील की स्थिति का निरीक्षण कराने का निर्देश दिया। जोशीमठ के उपजिलाधिकारी चंद्रशेखर वशिष्ठ ने सिंचाई विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर झील का निरीक्षण किया और स्थानीय निवासियों से भी बातचीत की। मौके पर जेसीबी मशीन का उपयोग कर मलबा हटाने का कार्य आरंभ किया गया। उपजिलाधिकारी ने बताया कि पानी की निकासी निरंतर हो रही है और झील की निगरानी की जा रही है।
जिलाधिकारी गौरव कुमार ने जानकारी दी कि झील की लंबाई लगभग 300 मीटर, चौड़ाई 60 मीटर और गहराई 3 मीटर के करीब है। वर्तमान में धौली गंगा से 15 मीटर क्षेत्र में जल निकासी की जा रही है, जिसे बढ़ाकर 30 मीटर करने की योजना है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस स्थिति से कोई खतरा नहीं है।
प्राकृतिक आपदाओं के प्रति प्रशासन की तैयारी
उत्तराखंड में हर साल बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, जिससे न केवल जनजीवन प्रभावित होता है, बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी भारी नुकसान होता है। ऐसे में जिला प्रशासन की यह सक्रियता इस बात का संकेत है कि वह इन आपदाओं से निपटने के लिए तैयार है। विशेषकर जब बात जल निकासी की हो, तो इसका प्रभाव स्थानीय निवासियों के जीवन पर पड़ता है।
स्थानीय लोगों ने भी प्रशासन की इस पहल की सराहना की है। उनका मानना है कि यदि समय पर मलबा हटाने और जल निकासी की प्रक्रिया शुरू नहीं होती, तो स्थिति और गंभीर हो सकती थी। वे उम्मीद कर रहे हैं कि प्रशासन इसी तरह से तत्परता दिखाएगा और भविष्य में भी ऐसी ही सक्रियता बनाए रखेगा।
कृत्रिम झील से जुड़ी संभावनाएं और चुनौतियाँ
धौली गंगा नदी पर बनी यह कृत्रिम झील पर्यावरण और स्थानीय पारिस्थितिकी के लिए भी महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल निकासी सही तरीके से की जाए, तो यह झील न केवल जल भंडारण का काम कर सकती है, बल्कि कृषि के लिए भी उपयोगी साबित हो सकती है। हालांकि, इसके साथ ही चुनौतियां भी हैं, जैसे कि मलबा हटाने का कार्य, जल स्तर की निगरानी, और स्थानीय निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
प्रशासन को चाहिए कि वह इस झील की निरंतर निगरानी करे और यह सुनिश्चित करे कि किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए पर्याप्त तैयारी हो। इसके अलावा, स्थानीय निवासियों को भी जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे इस स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहें।
निष्कर्ष
धौली गंगा नदी पर बनी कृत्रिम झील का मामला उत्तराखंड के प्रशासन की तत्परता और सक्रियता को दर्शाता है। जल प्रवाह की निकासी और मलबा हटाने के कार्यों के जरिए प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया है कि स्थानीय निवासियों की सुरक्षा और जीवन को कोई खतरा न हो। इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि भविष्य में ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए सभी संभावनाओं पर ध्यान दिया जाए और सतर्कता बरती जाए।























