नैनीताल राजभवन: एक ऐतिहासिक स्थल की अनूठी कहानी
किशोर जोशी, नैनीताल। नैनीताल का राजभवन, जिसे स्कार्टिश महल के रूप में जाना जाता है, अपनी आलीशान और बेजोड़ शिल्पकला के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसका निर्माण 27 अप्रैल 1897 में शुरू हुआ था और यह अंग्रेजों द्वारा उत्तर पश्चिम प्रांतों के राज्यपाल के निवास के रूप में स्थापित किया गया था। इस भवन की वास्तुकला यूरोपीय पैटर्न और गौथिक शैली पर आधारित है, जो इसे एक विशेष पहचान देती है।
राजभवन ने अपने 125 वर्षों में अपने भव्यता और खूबसूरती को बनाए रखा है। इसकी डिजाइनिंग आर्किटेक्ट स्वीवंस और कार्यकारी अभियंता एफओडब्लू आर्टेल ने की थी। इस भवन का निर्माण ई आकार में किया गया था, जिसमें नार्थ वेस्ट प्रोविंस के गवर्नर सर एंथोनी पेट्रिक मेकडोनल्ड की महत्वपूर्ण भूमिका थी। आजादी के बाद इस भवन का नाम राजभवन रखा गया था, जो कि भारतीय संस्कृति और इतिहास का प्रतीक बन गया।
राजभवन का भव्य परिसर और पर्यटकों के लिए खुलापन
राजभवन का क्षेत्रफल करीब 220 एकड़ है, जिसमें से 160 एकड़ क्षेत्र जंगल है। 1975 में यहां एक गोल्फ मैदान का निर्माण किया गया। 1994 में इस भवन को आम लोगों के लिए खोल दिया गया, जिससे पर्यटक इसकी खूबसूरती और ऐतिहासिक महत्व को देख सकें। इतिहासकार प्रो. अजय रावत के अनुसार, राजभवन की नींव ब्रिटेन के बर्किंघम पैलेस की तर्ज पर रखी गई थी, और यह 1900 में बनकर तैयार हुआ।
राजभवन का निर्माण उस समय के मशहूर आर्किटेक्ट फेड्रिक विलियम स्टीवन द्वारा किया गया था, जिन्होंने मुंबई में छत्रपति शिवाजी टर्मिनल का भी डिजाइन तैयार किया था। यह भवन न केवल एक प्रशासनिक केंद्र था, बल्कि यह नैनीताल की प्राकृतिक सुंदरता का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।
नैनीताल में अन्य ऐतिहासिक भवन
प्रो. रावत के अनुसार, नैनीताल में राजभवन के अलावा अन्य कई भवन भी निर्मित हुए हैं। 1862 में, जब अवध की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनी, तब नार्थ वेस्ट प्रांत के गवर्नर का प्रवास शुरू हुआ। इस भवन में 115 कमरे और एक स्विमिंग पूल भी है। इसे बर्मा टीक, स्थानीय पत्थर और इंग्लैंड से लाए गए शीशे एवं टाइल से सजाया गया है।
राजभवन का निर्माण भूगर्भीय परीक्षण के बाद मजबूती से किया गया, ताकि नैनीताल के अन्य भवनों की तरह दरारें न आएं, जो कमजोर भूगर्भीय स्थिति के कारण हुई थीं। इस भवन में 113 कमरे हैं और यहां पर एक गुरुद्वारा भी स्थापित किया गया था, जो नैनीताल का पहला गुरुद्वारा था।
राजभवन की विशेषताएं और लकड़ी का उपयोग
राजभवन की खिड़कियों, फर्नीचर और अन्य सामग्रियों में शीशम, साटिन, साइप्रस और साल की लकड़ियों का उपयोग किया गया है। इसके अलावा, पीतल और लोहे के नल भी ब्रिटेन से लाए गए थे। सजावट के लिए कालीन फतेहपुर, आगरा और लखनऊ से मंगाए गए थे। राजभवन में पहले वन महोत्सव की शुरुआत भी हुई थी। प्रो. रावत के अनुसार, इस इमारत का निर्माण इस तरह किया गया है कि हर कमरे में सूर्य की रोशनी भरपूर मात्रा में पहुंचे।
इस प्रकार, नैनीताल का राजभवन न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है, बल्कि यह स्थापत्य कला का एक अद्भुत उदाहरण भी है जो आज भी अपनी भव्यता और खूबसूरती के लिए जाना जाता है। यह भवन ना केवल नैनीताल की पहचान है, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद के इतिहास की एक महत्वपूर्ण कड़ी भी है।























