Festival: हिमालयी रंगों और लोक धुनों से गूंजा निनाद महोत्सव

kapil6294
Nov 04, 2025, 6:19 PM IST

सारांश

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह – निनाद 2025 उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह की भव्यता जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह, जिसे निनाद-2025 के नाम से जाना जाता है, के तीसरे दिन हिमालयी संस्कृति के रंगों और लोक परंपराओं की अद्भुत झलक देखने को मिली। इस कार्यक्रम ने दर्शकों को एक नई दुनिया […]

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह – निनाद 2025

उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह की भव्यता

जागरण संवाददाता, देहरादून: उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह, जिसे निनाद-2025 के नाम से जाना जाता है, के तीसरे दिन हिमालयी संस्कृति के रंगों और लोक परंपराओं की अद्भुत झलक देखने को मिली। इस कार्यक्रम ने दर्शकों को एक नई दुनिया में ले जाकर मंत्रमुग्ध कर दिया।

तिब्बत से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के कलाकारों ने अपनी पारंपरिक प्रस्तुतियों से सभागार को लोकसंगीत, नृत्य और संस्कृति की अनोखी यात्रा पर ले जाने का कार्य किया। जौनसार-बावर क्षेत्र का हारूल नृत्य विशेष रूप से दर्शकों के बीच रोमांच का कारण बना। यह नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन था, बल्कि उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक था।

कार्यक्रम का शुभारंभ और प्रमुख उपस्थित लोग

इस भव्य समारोह का उद्घाटन देहरादून नगर निगम के महापौर सौरभ थपलियाल और उत्तराखंड साहित्य एवं कला परिषद की अध्यक्ष मधु भट्ट द्वारा दीप प्रज्वलित करके किया गया। समारोह में संस्कृति निदेशालय के उपनिदेशक आशीष कुमार, कला प्रेमी, छात्र और स्थानीय नागरिकों की एक बड़ी संख्या ने भाग लिया। कार्यक्रम की शुरुआत उत्तराखंड के जौनसार-बावर क्षेत्र के प्रसिद्ध हारूल नृत्य से हुई, जिसने सभी उपस्थित लोगों का ध्यान खींचा।

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लोक कलाकार लायकराम और उनके सहयोगियों ने जब पारंपरिक वेशभूषा में परात घुमाते हुए वीरता और प्रेम के गीतों पर थिरकना शुरू किया, तो पूरा सभागार ताली की गूंज से भर गया। हारूल नृत्य आमतौर पर मरोज और बिस्सू जैसे पर्वों पर किया जाता है, जो लोकजीवन की वीरगाथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं का प्रतीक है। कार्यक्रम के अंत में उपनिदेशक आशीष कुमार ने कलाकारों को सम्मानित किया।

तिब्बत और अरुणाचल की संस्कृति का सम्मिलन

हिमालयी संस्कृति की विविधता को उजागर करते हुए तिब्बत इंस्टीट्यूट ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स, धर्मशाला के कलाकारों ने स्नो लेपर्ड और नागरी माब्जा नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को तिब्बती लोक कला से अवगत कराया। इस प्रस्तुति ने दर्शकों में विशेष उत्साह पैदा किया।

वहीं, अरुणाचल प्रदेश की आदी और गालो जनजातियों के कलाकारों ने अपने पारंपरिक गीतों और नृत्यों से पूरे माहौल को उत्सवमय बना दिया। उनकी रंग-बिरंगी पोशाकें और आभूषण कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण बने रहे। महापौर सौरभ थपलियाल ने अतिथि कलाकारों को शाल और स्मृति चिह्न भेंट कर सम्मानित किया।

संस्कृति के संरक्षण का संकल्प

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उत्तराखंड की लोकभाषा एवं संस्कृति विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई, जिसमें प्रो. देव सिंह पोखरिया, डा. नंद किशोर हटवाल, लोकेश नवानी और डा. नंदलाल भारती ने अपने विचार प्रस्तुत किए।

वक्ताओं ने कहा कि नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं को शिक्षा से जोड़ना एक सराहनीय कदम है। उन्होंने लोक भाषाओं के मानकीकरण, पाठ्यक्रम निर्माण और डिजिटल माध्यमों से प्रसार पर जोर दिया। इस चर्चा ने उपस्थित सभी लोगों को संस्कृति के संरक्षण की दिशा में सोचने पर मजबूर किया।

अंत में एक नई दिशा की ओर

इस कार्यक्रम ने न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित किया, बल्कि इसे आगे बढ़ाने और संरक्षित करने के प्रति एक नई दिशा भी दिखाई। कलाकारों की प्रस्तुतियों ने सभी उपस्थित लोगों को एक साथ लाने का कार्य किया और संस्कृति के प्रति उनकी जागरूकता को बढ़ाया।

इस भव्य समारोह ने यह साबित कर दिया कि हिमालयी संस्कृति की अमूल्य संपत्ति को संजोना और उसे अगली पीढ़ियों तक पहुँचाना कितना आवश्यक है। ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से, हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को जीवित रख सकते हैं और उसे बढ़ावा दे सकते हैं।


कपिल शर्मा 'जागरण न्यू मीडिया' (Jagran New Media) और अमर उजाला में बतौर पत्रकार के पद पर कार्यरत कर चुके है अब ये खबर २४ लाइव के साथ पारी शुरू करने से पहले रिपब्लिक भारत... Read More

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