उत्तराखंड में बढ़ती साइबर ठगी: डिजिटल अरेस्ट का नया स्कैम
सोबन सिंह गुसांई, देहरादून। वर्तमान युग में, जहाँ डिजिटल तकनीकी का तेजी से विस्तार हो रहा है, वहीं साइबर ठग भी अपने ठगी के तरीकों में लगातार नये-नये तरीके अपना रहे हैं। हाल ही में उत्तराखंड में एक नया स्कैम ‘डिजिटल अरेस्ट’ सामने आया है, जिसके तहत ठगों ने पिछले तीन वर्षों में 43 लोगों से 30 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि लूट ली है। यह ठगी मुख्य रूप से बुजुर्ग लोगों को निशाना बनाकर की गई है, जो कि अधिकतर तकनीकी ज्ञान से अंजान होते हैं।
इस मामले में साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन ने कार्रवाई करते हुए 29 ठगों को गिरफ्तार किया है, जबकि अन्य मामलों में पुलिस जांच जारी है। बढ़ते डिजिटल अरेस्ट के मामलों को देखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया है और इस पर सुनवाई शुरू की है। कोर्ट ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए कड़े आदेश देने की आवश्यकता पर बल दिया है, क्योंकि अगर इसे नजरअंदाज किया गया, तो भविष्य में यह समस्या और गंभीर हो सकती है।
पुलिस की तैयारियों में कमी
उत्तराखंड में ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, जो कि एक गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि पुलिस इन ठगों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। एक ओर, पुलिस संसाधनों की कमी से जूझ रही है, वहीं दूसरी ओर मानवशक्ति की भी भारी कमी है। साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन देहरादून के रिकॉर्ड के अनुसार, अक्टूबर 2023 से नवंबर 2025 के बीच साइबर ठगों ने 43 लोगों को अपने जाल में फंसाया और उन्हें गिरफ्तारी का डर दिखाकर 30 करोड़ रुपये की ठगी की।
इन मामलों में से 24 डिजिटल अरेस्ट के मुकदमे साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन देहरादून में दर्ज हैं, जबकि अन्य मुकदमे कुमाऊं, उधमसिंहनगर, हरिद्वार और पौड़ी गढ़वाल में दर्ज हुए हैं। यह दर्शाता है कि ठगों का नेटवर्क कितना व्यापक हो चुका है और इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
साइबर अपराध के हथियार: सिम कार्ड और बैंक खाते
छोटे-मोटे ठग ही चढ़ते हैं पुलिस के हत्थे ऐसे में साइबर अपराधियों के दो बड़े हथियार हैं – सिम कार्ड और बैंक अकाउंट। हालांकि दोनों की केवाईसी प्रक्रिया होती है, लेकिन हजारों फर्जी सिम कार्ड विभिन्न नामों और पहचानों से बिकते हैं। पुलिस ने समय-समय पर कई साइबर अपराधियों को सिम कार्ड के साथ गिरफ्तार किया है, लेकिन फर्जी सिम कार्ड की खरीद-फरोख्त पर रोक नहीं लग पा रही है।
इस प्रकार, देश में बैठे साइबर ठग फर्जी तरीके से सिम कार्ड लेते हैं और इन्हीं नंबरों से बैंक खाते खोलकर ठगी का काम करते हैं। ठगी की धनराशि विदेशों जैसे चाइना, कंबोडिया और थाइलैंड में भेजी जाती है। विदेश में बैठे साइबर ठगों को पकड़ना पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
डिजिटल अरेस्ट का खतरनाक जाल
आइपीएस अधिकारी कुश मिश्रा ने बताया कि डिजिटल अरेस्ट का अर्थ है कि किसी व्यक्ति को फोन या वीडियो कॉल के माध्यम से यह विश्वास दिलाना कि वह किसी अपराध में शामिल है और उसे गिरफ्तार किया जा रहा है। ठग पहले पीड़ित को फोन करके बताते हैं कि उसके बैंक खाते या मोबाइल नंबर का उपयोग किसी गैरकानूनी गतिविधि में हुआ है। इसके बाद उन्हें डराया जाता है कि यदि वे सहयोग नहीं करेंगे तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
इसके बाद अपराधी वीडियो कॉल के जरिए खुद को पुलिस अधिकारी या किसी सरकारी एजेंसी से जोड़कर पेश करते हैं। इस दौरान बैकग्राउंड में पुलिस स्टेशन या सरकारी कार्यालय जैसा माहौल तैयार किया जाता है। फिर ठग पीड़ित से रकम अपने खाते में ट्रांसफर करवा लेते हैं, जिससे ठगी का खेल सफल हो जाता है।
डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचें
इस प्रकार की ठगी से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
- कोई भी पुलिस या सरकारी एजेंसी ऑनलाइन या वीडियो कॉल पर किसी को गिरफ्तार नहीं करती है।
- यदि कोई व्यक्ति खुद को पुलिस, सीबीआई, आरबीआई या अन्य सरकारी अधिकारी बताकर कॉल करे, तो तुरंत कॉल काट दें।
- बैंक खाता नंबर, ओटीपी, कार्ड डिटेल, पैन या आधार नंबर किसी को फोन या वाट्सएप पर न बताएं।
- साइबर ठग वीडियो कॉल पर नकली पुलिस ऑफिस दिखाते हैं, ये सब फर्जी होते हैं।
- किसी कॉल पर शक होने पर तत्काल हेल्पलाइन नंबर 1930 पर संपर्क करें।
इन सावधानियों को अपनाने से हम साइबर ठगी से खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं।


























