उत्तराखंड में रम्माण का विधानसभा संरक्षण
राज्य ब्यूरो, देहरादून। यूनेस्को की विश्व अमूर्त धरोहर में शामिल हिमालय की सांस्कृतिक पहचान रम्माण का अब विधानसभा द्वारा संरक्षण किया जाएगा। सोमवार को विधानसभा के विशेष सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के संबोधन से पूर्व, विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने चमोली जिले के सलूड़ डुंग्रा गांव में मनाए जाने वाले परंपरागत रम्माण पर केंद्रित एक पुस्तक, रम्माण में प्रयुक्त होने वाले मुखौटा की प्रतिकृति, राष्ट्रपति का पोट्रेट और ब्रहमकमल शाल भेंट किए। इस अवसर पर राष्ट्रपति को रम्माण के महत्व के बारे में भी जानकारी दी गई।
रम्माण: उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर
देवभूमि उत्तराखंड अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, पर्व उत्सव और लोक रंगों के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से एक महत्वपूर्ण आयोजन रम्माण है, जो न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि इसमें समृद्ध लोककला, नाट्य, संगीत, नृत्य और सामुदायिक सहभागिता की झलक भी मिलती है। रम्माण का आयोजन चमोली के सलूड़ डुंग्रा गांव में दशकों से किया जा रहा है, जिसमें मुखौटा नृत्य और अभिनय प्रमुख आकर्षण होते हैं। इस आयोजन में रामायण के विभिन्न प्रसंगों का नृत्य शैली में मंचन किया जाता है।
रम्माण महोत्सव का महत्व
रम्माण महोत्सव की विशिष्टताओं के कारण ही इसे यूनेस्को द्वारा विश्व अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर में शामिल किया गया है। यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का कार्य करता है, बल्कि स्थानीय समुदाय की एकजुटता और सांस्कृतिक पहचान को भी प्रोत्साहित करता है। लेकिन रम्माण के संरक्षण के लिए आवश्यक है कि इसे बनाने वाले कलाकारों को भी मान्यता और सहयोग मिले। वर्तमान में, मुखौटा बनाने वाले कलाकारों की संख्या बहुत कम रह गई है, और विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण के अनुसार, इस समय मुखौटा बनाने वाला केवल एक ही व्यक्ति बचा है। यदि इस कला का संरक्षण नहीं किया गया, तो रम्माण के इतिहास के पन्नों में यह कला सिमट कर रह जाएगी।
संरक्षण के लिए उठाए जाएंगे कदम
इस स्थिति को देखते हुए, गैरसैंण स्थित विधानसभा भवन में संचालित अंतरराष्ट्रीय संसदीय अध्ययन, शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से रम्माण और मुखौटा के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। इस संदर्भ में 18 मुखौटे बनवाए गए हैं, जो रम्माण की कला को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके साथ ही, इस केंद्र में युवाओं को रम्माण और मुखौटा कला से संबंधित प्रशिक्षण देने की व्यवस्था भी की जाएगी। यह प्रयास न केवल आने वाली पीढ़ियों को इस सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने में मदद करेगा, बल्कि कलाकारों को भी एक मंच प्रदान करेगा ताकि वे अपनी कला को और विकसित कर सकें।
समुदाय की भागीदारी और भविष्य की संभावनाएँ
रम्माण महोत्सव की सफलता के लिए स्थानीय समुदाय की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। रम्माण के संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाना और स्थानीय लोगों को इस कला में भागीदार बनाना होगा। इसके अलावा, रम्माण महोत्सव को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमोट करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। इससे न केवल रम्माण की पहचान बढ़ेगी, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को भी वैश्विक स्तर पर मान्यता मिलेगी।
इस प्रकार, रम्माण का विधानसभा संरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को सहेजने में मदद करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी इसे एक जीवंत धरोहर के रूप में प्रस्तुत करेगा।


























