एनसीएलएटी ने मेटा के लिए दी राहत, व्हाट्सएप के डेटा शेयरिंग पर लगा बैन हुआ समाप्त
भारत के नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने मंगलवार को मेटा द्वारा स्वामित्व वाले व्हाट्सएप के उपयोगकर्ता डेटा को अन्य मेटा संस्थाओं के साथ साझा करने पर लगे पांच साल के प्रतिबंध को समाप्त कर दिया। यह निर्णय अमेरिकी तकनीकी कंपनी के लिए आंशिक जीत साबित हुआ है, हालांकि, ट्रिब्यूनल ने एक बड़ा जुर्माना भी बरकरार रखा है।
व्हाट्सएप ने नवंबर 2024 में भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) द्वारा डेटा शेयरिंग पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती दी थी, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि इसके परिणामस्वरूप उसे कुछ फीचर्स को वापस लेना पड़ सकता है। मेटा ने भी CCI की आलोचना की है, यह कहते हुए कि आयोग के पास आवश्यक “तकनीकी विशेषज्ञता” नहीं थी, जिससे उसके आदेश के प्रभावों को समझा जा सके।
एनसीएलएटी का निर्णय और उसके प्रभाव
NCLAT ने डेटा शेयरिंग पर लगे प्रतिबंध को हटाते हुए यह उल्लेख किया कि “प्रतिबंध के पीछे का तर्क पूरी तरह से गायब था”। इसके साथ ही, ट्रिब्यूनल ने CCI द्वारा लगाए गए लगभग $25.4 मिलियन (लगभग ₹225 करोड़) के जुर्माने को बरकरार रखा, यह कहते हुए कि मेटा ने अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग किया है और अनुचित शर्तें लागू की हैं।
मेटा ने इस निर्णय पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। हालांकि, अपने कारोबार को लेकर कंपनी ने यह स्पष्ट किया है कि वह अपने उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता को प्राथमिकता देती है और इसे बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
व्हाट्सएप का डेटा शेयरिंग विवाद
यह मामला 2021 में शुरू हुआ था, जब व्हाट्सएप की गोपनीयता नीति में बदलाव को लेकर व्यापक आलोचना हुई थी। CCI की जांच में पाया गया कि नीति ने उपयोगकर्ताओं को बदलाव स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, अन्यथा सेवा का उपयोग खोने का जोखिम था। यह निर्णय उस समय आया जब भारतीय उपयोगकर्ता व्हाट्सएप की नई नीतियों को लेकर चिंतित थे।
भारत मेटा का सबसे बड़ा बाजार है, जहां फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पर सबसे अधिक उपयोगकर्ता हैं। ऐसे में, भारत में इस प्रकार के विवादों का सीधा असर कंपनी की वैश्विक रणनीतियों पर पड़ता है। मेटा के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह भारतीय बाजार में अपने उपयोगकर्ताओं का विश्वास बनाए रखे।
भविष्य की संभावनाएं
इस निर्णय के बाद, मेटा और व्हाट्सएप को उम्मीद है कि यह उनके व्यवसाय को अधिक स्थिरता प्रदान करेगा और उपयोगकर्ताओं के बीच विश्वास को बढ़ाएगा। हालांकि, CCI का जुर्माना यह संकेत देता है कि मेटा को अपनी व्यावसायिक प्रथाओं में सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मेटा भविष्य में अपने डेटा शेयरिंग प्रथाओं में कोई बदलाव लाती है और क्या वह उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता को और अधिक प्राथमिकता देती है। इस पृष्ठभूमि में, उपयोगकर्ताओं की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए मेटा को अपने व्यवसाय मॉडल में सुधार करना होगा।
निष्कर्ष
इन सभी घटनाक्रमों के बीच, यह स्पष्ट है कि मेटा को अपने उपयोगकर्ताओं के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना और स्वीकार करना होगा। एनसीएलएटी का निर्णय एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, जो न केवल मेटा की कार्यप्रणाली को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत में डिजिटल गोपनीयता के मुद्दों पर भी प्रकाश डालेगा।
यूजर्स के लिए यह जरूरी है कि वे अपनी जानकारी की सुरक्षा के प्रति जागरूक रहें और प्लेटफार्मों की नीतियों की समीक्षा करें। भविष्य में, तकनीकी कंपनियों को अपने उपयोगकर्ताओं के साथ अधिक पारदर्शिता बनाए रखने की आवश्यकता होगी, ताकि किसी भी प्रकार की गोपनीयता संबंधी चिंताओं को कम किया जा सके।























