Trump Case: भारतीय मूल के नील कत्याल की अदालती लड़ाई

सारांश

नील कत्याल: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में टैरिफ नीति के खिलाफ केस की सुनवाई भारतीय मूल के अमेरिकी अटॉर्नी नील कत्याल आज प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीति के खिलाफ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण केस की पैरवी करेंगे। यह मामला इस प्रश्न पर केंद्रित है कि क्या राष्ट्रपति के पास 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी […]

kapil6294
Nov 05, 2025, 2:40 PM IST

नील कत्याल: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में टैरिफ नीति के खिलाफ केस की सुनवाई

भारतीय मूल के अमेरिकी अटॉर्नी नील कत्याल आज प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीति के खिलाफ अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण केस की पैरवी करेंगे। यह मामला इस प्रश्न पर केंद्रित है कि क्या राष्ट्रपति के पास 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) के तहत एकतरफा टैरिफ लगाने का अधिकार है, या यह अधिकार केवल अमेरिकी कांग्रेस के पास है।

कत्याल का स्पष्ट मानना है कि IEEPA कानून राष्ट्रपति को टैक्स या टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं देता है। उनका तर्क है कि ऐसा करना अमेरिकी कांग्रेस की शक्तियों पर अतिक्रमण करने के समान है। यह मामला कानूनी और राजनीतिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह राष्ट्रपति की आर्थिक शक्तियों की सीमाओं को परिभाषित करने में मदद कर सकता है।

नील कत्याल का पृष्ठभूमि

नील कत्याल का जन्म शिकागो, इलिनॉय में हुआ था। उनके माता-पिता भारत से अमेरिका प्रवास कर आए थे। उनकी मां, प्रतिभा कत्याल, एक बाल रोग विशेषज्ञ हैं, जबकि पिता, सुरेन्द्र कत्याल, एक इंजीनियर थे जिनका 2005 में निधन हो गया। नील की बहन, सोनिया कत्याल, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के बर्कले स्कूल ऑफ लॉ में प्रोफेसर हैं।

नील ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जेसुइट कैथोलिक हाई स्कूल से प्राप्त की और बाद में डार्टमाउथ कॉलेज में पढ़ाई की। यहाँ वे फाई बीटा कप्पा, सिग्मा न्यू फ्रैटर्निटी, और डार्टमाउथ फॉरेंसिक यूनियन के सदस्य रहे। येल लॉ स्कूल में पढ़ाई के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण आर्टिकल्स भी लिखे।

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विधि क्षेत्र में करियर

1995 में अपनी ज्यूरिस डॉक्टर (JD) डिग्री हासिल करने के बाद, नील कत्याल ने पहले US कोर्ट ऑफ अपील्स में क्लर्क के रूप में काम किया और फिर US सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस स्टीफन ब्रेयर के क्लर्क बने।

1990 के दशक के अंत में, अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने नील कत्याल को प्रो-बोनो यानी मुफ्त कानून सेवाओं की आवश्यकता पर एक रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी। साल 1999 में, उन्होंने स्पेशल काउंसल से संबंधित नियम और दिशा-निर्देश भी तैयार किए।

नील कत्याल ने सामाजिक मामलों में भी योगदान दिया है। उन्होंने नेटफ्लिक्स के ‘हाउस ऑफ कार्ड्स’ और शोटाइम के ‘बिलियन्स’ जैसे शो में कैमियो रोल भी निभाए हैं।

टैरिफ मामले में निचली अदालत का फैसला

ट्रम्प प्रशासन ने जब से टैरिफ लगाना शुरू किया, कई व्यवसायियों ने इस मामले को लेकर निचली अदालत में चुनौती दी। IEEPA कानून का हवाला देते हुए ट्रम्प प्रशासन ने तर्क किया कि ये टैरिफ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। नील कत्याल ने इस मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया।

कत्याल का तर्क था कि टैरिफ लगाने की शक्ति विशेष रूप से अमेरिकी कांग्रेस के पास है। 29 अगस्त 2025 को, कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट ने 7-4 के बहुमत से कत्याल के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके बाद ट्रम्प प्रशासन ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तैयारी

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में बुधवार, 5 अक्टूबर को इस केस की सुनवाई 80 मिनट तक चलेगी, जबकि अन्य मामलों में 60 मिनट का समय निर्धारित होता है। इस सुनवाई के दौरान अदालत को पूरी तरह भरा रहने की उम्मीद है। दुनिया भर की नजर इस बात पर टिकी है कि क्या राष्ट्रपति की आर्थिक शक्तियों को सीमित किया जाएगा या फिर उन्हें और अधिक अधिकार प्राप्त होंगे।

नील कत्याल का यह केस केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि यह अमेरिकी लोकतंत्र और संविधान की बुनियाद पर भी प्रभाव डाल सकता है। यदि अदालत ने कत्याल के तर्क को स्वीकार किया, तो यह भविष्य में राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित करने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।

इस मामले के परिणाम से यह स्पष्ट होगा कि अमेरिकी कांग्रेस की शक्तियों को कितना महत्व दिया जाता है, और क्या राष्ट्रपति को अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है।

अंत में

नील कत्याल का यह केस न केवल उनके करियर के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अमेरिका के राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। सभी की नजर इस सुनवाई पर है, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत संवेदनशील है।

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