Kartik Purnima 2025 | Image: Freepik
कार्तिक पूर्णिमा 2025: हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है, जिसे त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत फायदेमंद माना जाता है। कार्तिक मास की यह पूर्णिमा पवित्र नदियों में स्नान, दान और दीपदान करने का समय है, जो अक्षय पुण्य की प्राप्ति और पापों के नाश का प्रतीक है। इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी नारायण और भगवान शिव की पूजा का महत्व है। आइए जानते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा-पाठ का सही मुहूर्त क्या है और पूजा विधि कैसे करनी चाहिए।
कब है कार्तिक पूर्णिमा?
इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 4 नवंबर को रात 10:36 बजे से प्रारंभ हो रही है और इसका समापन 5 नवंबर को शाम 6:48 बजे तक होगा।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
स्नान-दान का शुभ मुहूर्त सुबह 04:52 बजे से लेकर 05:44 बजे तक है।
देव दीपावली का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में शाम 05:15 बजे से लेकर 07:50 बजे तक है।
सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06:34 बजे से अगले दिन सुबह 06:37 बजे तक रहेगा।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा किस विधि से करें?
- सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, जैसे गंगा में स्नान करें। अगर यह संभव न हो तो गंगाजल मिलाकर घर पर स्नान करें।
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और भगवान शिव की पूजा करें। उनके समक्ष दीपक जलाएं, मंत्रों का जाप करें और फल, फूल व मिठाई अर्पित करें।
- इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा का श्रवण करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
- शाम के समय प्रदोष काल में मंदिरों, पवित्र नदियों के घाटों और घर के मुख्य द्वार पर दीपदान अवश्य करें। यह ‘देव दीपावली’ का मुख्य कर्म है।
- शाम को चंद्रमा को अर्घ्य दें और उनका पूजन करें।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन किन चीजों का दान करें?
कार्तिक पूर्णिमा के दिन अन्न, पीले वस्त्र, सफेद रंग की चीजें, गुड़ और दीपदान का दान जरूर करें। यह दान पुण्य का स्रोत माना जाता है।
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कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा का महत्व क्या है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पूरे वर्ष के गंगा स्नान का फल मिलता है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस खुशी में देवताओं ने स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर दीप जलाए थे, जिसे देव दीपावली कहा जाता है। इसलिए इस दिन की विशेष पूजा विधि और अनुष्ठान का महत्व अत्यधिक है।






















