Dev Deepawali: काशी में क्यों मनाई जाती है देव दिवाली? जानें मान्यता

kapil6294
Nov 05, 2025, 10:27 AM IST

सारांश

देव दीपावली: एक अद्भुत पर्व का महत्व देव दीपावली, जिसे देव दिवाली या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला एक अद्वितीय पर्व है। यह पर्व दीपावली के 15 दिन बाद आता है और इसे विशेष रूप से मान्यता प्राप्त है कि इस […]

देव दीपावली: एक अद्भुत पर्व का महत्व

देव दीपावली, जिसे देव दिवाली या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला एक अद्वितीय पर्व है। यह पर्व दीपावली के 15 दिन बाद आता है और इसे विशेष रूप से मान्यता प्राप्त है कि इस दिन स्वर्ग के देवता धरती पर उतरकर दीप जलाते हैं। इस वर्ष 5 नवंबर 2025 को देव दीपावली का आयोजन किया जा रहा है। यह पर्व पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन वाराणसी की गंगा घाटों पर इसका जो भव्य स्वरूप देखने को मिलता है, वह अद्वितीय है। आइए जानते हैं कि यह पर्व विशेष रूप से काशी से क्यों जुड़ा है।

देव दीपावली का धार्मिक महत्व

देव दीपावली का प्रमुख आधार भगवान शिव और त्रिपुरासुर से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। त्रिपुरासुर एक अत्यंत शक्तिशाली दैत्य था, जिसने तपस्या के बल पर एक ऐसा वरदान प्राप्त किया था, जिसके अनुसार उसे तब तक नहीं मारा जा सकता जब तक कि उसके तीन नगर एक सीध में न आ जाएं। इसके साथ ही उसे मारने वाला शस्त्र ऐसा हो, जो पृथ्वी पर न बना हो, स्त्री न हो और एक ही बाण हो। इस वरदान के अहंकार में त्रिपुरासुर ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया और सभी देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य भयभीत हो गए। उन्होंने भगवान विष्णु की शरण ली, जिन्होंने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने का मार्ग बताया।

भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के विनाश का संकल्प लिया। उन्होंने अपने दिव्य रथ पर सवार होकर, जिसमें पृथ्वी रथ, सूर्य-चंद्रमा पहिये, मेरु पर्वत धनुष और शेषनाग डोर थे, त्रिपुरासुर पर चढ़ाई की। जब तीनों नगर एक सीध में आए, तब महादेव ने एक ही बाण से तीनों पुरों और त्रिपुरासुर का संहार कर दिया। इस विजय के बाद, तीनों लोकों में शांति और आनंद का माहौल बना।

काशी और देव दीपावली का संबंध

इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने भगवान शिव की नगरी काशी में आकर गंगा के पवित्र घाटों पर दीप जलाकर भगवान शिव का आभार व्यक्त किया। यह दीपावली देवताओं द्वारा मनाई गई थी, इसलिए इस दिन को ‘देव दीपावली’ नाम दिया गया। कार्तिक पूर्णिमा की रात, दशाश्वमेध घाट सहित 84 घाटों को लाखों मिट्टी के दीयों से सजाया जाता है। गंगा की लहरों पर तैरते ये दीये और भव्य गंगा आरती का दृश्य अद्भुत लगता है।

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मान्यता है कि इस दिन देव स्वयं काशी में उपस्थित होकर दीपदान करते हैं, इसलिए यहां दीपदान का पुण्य अनंत गुना फलदायी होता है। इस दिन दीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसके साथ ही, कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और दीपदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी इस दिन दीपदान करने से प्रसन्न होती हैं, जिसके फलस्वरूप घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

कैसे मनाएं देव दीपावली?

देव दीपावली के अवसर पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन श्रद्धालु अपने घरों में दीप जलाते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। अगर आप इस पर्व को मनाना चाहते हैं, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:

  • अपनी पूजा सामग्री में दीये, अगरबत्ती, और फूलों का प्रयोग करें।
  • गंगा स्नान करने का अवसर प्राप्त करें और वहां दीपदान अवश्य करें।
  • घर की सफाई करें और सकारात्मक ऊर्जा के लिए दीप जलाएं।
  • माता लक्ष्मी की पूजा करें और उनसे सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।

देव दीपावली का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे समाज में एकता और प्रेम का संदेश भी देता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत होती है और हमें हमेशा सकारात्मकता की ओर अग्रसर रहना चाहिए। इस दिन हम सब मिलकर एक-दूसरे के साथ दीप जलाकर खुशियों का प्रतीक बन सकते हैं।

निष्कर्ष

देव दीपावली का पर्व हमें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत से जोड़ता है। यह पर्व न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह हमारे जीवन में शुभता और सकारात्मकता लाने का माध्यम भी है। इस अवसर पर हमें न केवल दीप जलाने चाहिए, बल्कि अपने जीवन में अच्छाइयों को भी उजागर करना चाहिए। इस तरह, देव दीपावली का पर्व हमें न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी जोड़ता है।


कपिल शर्मा 'जागरण न्यू मीडिया' (Jagran New Media) और अमर उजाला में बतौर पत्रकार के पद पर कार्यरत कर चुके है अब ये खबर २४ लाइव के साथ पारी शुरू करने से पहले रिपब्लिक भारत... Read More

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