Maoists: बच्चों को माता-पिता से छीनने की सुनीता की दास्तान

सारांश

बालाघाट पुलिस के सामने सरेंडर करने वाली बीजापुर की सुनीता के परिजनों की कहानी मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में पुलिस के सामने सरेंडर करने वाली बीजापुर के गोमवेटा गांव की सुनीता के परिजनों ने मंगलवार को माओवादी अत्याचार की एक दिल दहला देने वाली कहानी सुनाई। इस कहानी ने उस लाल आतंक का एक […]

kapil6294
Nov 04, 2025, 8:11 PM IST

बालाघाट पुलिस के सामने सरेंडर करने वाली बीजापुर की सुनीता के परिजनों की कहानी

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में पुलिस के सामने सरेंडर करने वाली बीजापुर के गोमवेटा गांव की सुनीता के परिजनों ने मंगलवार को माओवादी अत्याचार की एक दिल दहला देने वाली कहानी सुनाई। इस कहानी ने उस लाल आतंक का एक और चेहरा उजागर किया है, जिससे ग्रामीणों को प्रतिदिन जूझना पड़ता है। सुनीता के परिजनों ने बताया कि माओवादी संगठन गांव के युवाओं को डराकर और धमकाकर अपने साथ ले जाते हैं, जिससे उन पर अत्याचार की एक श्रृंखला शुरू हो जाती है।

परिजनों ने बताया कि सुनीता भी उन युवाओं में से एक थी, जिसे माओवादी संगठन ने अपने साथ ले लिया था। वहां उसके साथ न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक प्रताड़नाएं भी की जाती थीं। यह स्थिति सिर्फ सुनीता तक सीमित नहीं है, बल्कि गांव के अन्य युवाओं के लिए भी यही हालात हैं। माओवादी संगठन का ज़ोरदार आतंक ग्रामीणों पर इस कदर हावी हो गया है कि वे अपनी सुरक्षा के लिए हर समय चिंतित रहते हैं।

माओवादी संगठनों की धमकी और ग्रामीणों की मजबूरी

गांव के अन्य निवासियों ने बताया कि माओवादी संगठनों द्वारा युवाओं को अपने साथ ले जाना और उन्हें प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया अब आम बात हो गई है। यह डर ग्रामीणों के लिए एक संकट बन गया है। जब युवाओं को माओवादी संगठन में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता है, तो परिवारों की स्थिति और भी खराब हो जाती है। यदि कोई युवक इनकार करता है, तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी जाती है।

इस प्रकार की घटनाएं केवल एक गांव तक सीमित नहीं हैं। मध्य प्रदेश के कई अन्य क्षेत्रों में भी माओवादी गतिविधियों के कारण ग्रामीणों के लिए जीना मुश्किल हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि वे कई बार पुलिस से मदद मांग चुके हैं, लेकिन माओवादी आतंक के सामने उनकी आवाज़ अक्सर दब जाती है। इसीलिए, कई युवा संगठनों का हिस्सा बन जाते हैं, ताकि अपने परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।

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सरेंडर करने का साहस: सुनीता की कहानी

सुनीता का सरेंडर करना एक साहसी कदम है, जो उस भयावहता को उजागर करता है जो माओवादी संगठनों के अधीन होती है। सुनीता के परिजनों ने बताया कि उसने माओवादी दल से भागने का साहस जुटाया और अंततः बालाघाट पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। यह कदम उसके लिए आसान नहीं था, लेकिन उसने अपने छोटे भाई-बहनों और परिवार के अन्य सदस्यों को सुरक्षित रखने के लिए यह निर्णय लिया।

  • सुनीता ने माओवादी दल में रहते हुए मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का सामना किया।
  • उसका सरेंडर एक नई शुरुआत हो सकती है, जो अन्य युवाओं के लिए प्रेरणा बनेगी।
  • परिवार का मानना है कि सुनीता की यह बहादुरी गांव के अन्य युवाओं को भी माओवादी संगठनों से दूर रहने के लिए प्रेरित कर सकती है।

समाज और सरकार की जिम्मेदारी

इस स्थिति को देखते हुए, यह आवश्यक है कि समाज और सरकार दोनों मिलकर माओवादी आतंक के खिलाफ एक ठोस कदम उठाएं। केवल पुलिस बल की कार्रवाई से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि समाज के हर हिस्से को इस दिशा में सक्रिय होना होगा। ग्रामीणों को जागरूक करना, उन्हें सुरक्षा उपायों के प्रति सजग करना और उनके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना अत्यंत आवश्यक है।

मध्य प्रदेश की सरकार को चाहिए कि वह माओवादी गतिविधियों के खिलाफ कठोर कदम उठाए और ग्रामीणों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ठोस रणनीतियाँ विकसित करे। पुलिस और प्रशासन को चाहिए कि वे ग्रामीणों के साथ संवाद स्थापित करें, ताकि वे अपनी समस्याओं को खुलकर रख सकें।

निष्कर्ष: एक नई दिशा की ओर

सुनीता की कहानी एक उदाहरण है कि कैसे माओवादी आतंक ग्रामीणों की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। उनके परिजनों की आवाज़ हमें यह बताती है कि हमें इस समस्या के प्रति सजग रहना होगा और मिलकर इस आतंक का सामना करना होगा। हम सभी को मिलकर एक ऐसी दिशा की ओर बढ़ना होगा जहां ग्रामीण अपने जीवन को सुरक्षित रूप से जी सकें और माओवादी संगठनों के डर से मुक्त हो सकें।

इस प्रकार, सुनीता का साहसिक कदम हमें यह सिखाता है कि डर के आगे जीत है, और हमें अपने समाज को सुरक्षित रखने के लिए एकजुट होना होगा।


कपिल शर्मा 'जागरण न्यू मीडिया' (Jagran New Media) और अमर उजाला में बतौर पत्रकार के पद पर कार्यरत कर चुके है अब ये खबर २४ लाइव के साथ पारी शुरू करने से पहले रिपब्लिक भारत... Read More

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