मुरैना के किसान मुकेश गुर्जर की आत्महत्या ने परिवार में मचाई हलचल
मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के बानमौर तहसील के टीकरी गांव में एक किसान, मुकेश गुर्जर, ने कर्ज के बोझ और फसल के नुकसान के कारण आत्महत्या कर ली। मुकेश की पत्नी, लक्ष्मी गुर्जर ने बताया कि बारिश ने उनकी आखिरी उम्मीद भी छीन ली थी। उन्होंने कहा, “इस बार फसल अच्छी हुई थी। फसल बेचकर सब ठीक हो जाएगा। मेरी बेटी का भी अच्छा रिश्ता कर दूंगा, लेकिन बारिश ने सब बर्बाद कर दिया।”
31 अक्टूबर को मुकेश ने खेत पर जाने की बात कहकर घर से निकले, लेकिन शाम तक लौटकर नहीं आए। एक नवंबर की रात कुछ ग्रामीणों ने उन्हें अपने खेत से दो खेत दूर एक पेड़ पर फांसी पर लटका हुआ देखा। इस घटना से गांव में शोक की लहर दौड़ गई। पुलिस ने मर्ग कायम कर मामले की जांच शुरू की और दो नवंबर को उनका अंतिम संस्कार किया गया।
किसान की आर्थिक स्थिति और कर्ज का बोझ
39 वर्षीय मुकेश गुर्जर के पिता रामनाथ गुर्जर के पास साढ़े चार बीघा जमीन थी, लेकिन परिवार के बंटवारे के बाद मुकेश को केवल डेढ़ बीघा जमीन मिली। खेती के अलावा उनका कोई अन्य पेशा नहीं था, इसलिए वह हर साल अपने चाचा और रिश्तेदारों से 10 बीघा जमीन ठेके पर लेकर खेती करते थे। इस साल अतिवर्षा के कारण उनकी धान की फसल बर्बाद हो गई, जिससे उन्हें दो लाख रुपए की चिंता सताने लगी।
मुकेश की मानसिक स्थिति इस साल की शुरुआत में और खराब हो गई जब उनकी लगभग दो लाख रुपए की भैंस बीमारी के कारण मर गई। भैंस का दूध ही परिवार की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत था। पत्नी लक्ष्मी और बेटी ज्योति के अनुसार, भैंस की मौत के बाद मुकेश डिप्रेशन में चले गए थे, लेकिन फसल की अच्छी स्थिति ने उन्हें थोड़ी उम्मीद दी थी। लक्ष्मी ने कहा, “मुकेश ने हमेशा कहा कि फसल बेचकर सब ठीक हो जाएगा, लेकिन अतिवर्षा ने उनकी उम्मीदों को तोड़ दिया।”
परिवार में मातम और आर्थिक स्थिति की स्थिति
मुकेश ने अपनी पत्नी लक्ष्मी, 12वीं में पढ़ रही बेटी ज्योति, 10वीं में पढ़ रहे बेटे सौरभ और 8वीं में पढ़ रहे बेटे जयदीप को पीछे छोड़ा है। परिवार में मातम छाया हुआ है, और पत्नी-बेटी का रो-रोकर बुरा हाल है। लक्ष्मी ने कहा, “अब हम किसके सहारे जिएंगे? मेरे बच्चों को कौन देखेगा?”
रामनाथ गुर्जर, मुकेश के पिता, ने बताया कि मुकेश हमेशा शांत रहते थे और उन्होंने कभी कर्ज की गंभीरता के बारे में परिवार को नहीं बताया। परिवार के सदस्यों का कहना है कि अगर मुकेश अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बात करते, तो शायद कोई हल निकल आता। बलबीर गुर्जर, मुकेश का भाई, ने कहा, “हम सभी एक ही कमरे में रहते हैं। यदि मुकेश ने अपने दुख का साझा किया होता तो हम मिलकर कुछ कर सकते थे।”
सरकार की अनदेखी और ग्रामीणों की स्थिति
किसान मुकेश की आत्महत्या के बाद ग्रामीणों ने प्रशासन की अनदेखी की ओर इशारा किया। चचेरे भाई पटेल गुर्जर ने कहा, “भैंस की मौत और फसल बर्बाद होने के बाद कोई प्रशासनिक अधिकारी या पटवारी नहीं आया।” इस पर हल्का पटवारी गौरव शर्मा ने कहा कि उन्होंने फसल नुकसान का सर्वे कर लिया है, लेकिन ग्रामीणों ने सर्वे के परिणामों को गलत बताया।
इस गंभीर घटना ने यह प्रश्न उठाया है कि क्या किसानों की समस्याओं की ओर ध्यान दिया जा रहा है? क्या सरकार द्वारा उचित सहायता और संसाधन मुहैया कराए जा रहे हैं? मुकेश की आत्महत्या की घटना ने एक बार फिर किसानों की बदलती स्थिति और उनके मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को उजागर किया है।
किसानों की आत्महत्या का बढ़ता आंकड़ा
यह घटना अकेली नहीं है, बल्कि मध्य प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का बढ़ता आंकड़ा चिंता का विषय बनता जा रहा है। आर्थिक तंगी, फसल बर्बादी, और असमर्थता के कारण कई किसान इस तरह के निराशाजनक कदम उठा रहे हैं। सरकार द्वारा इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि किसानों को उनके अधिकार और सहायता मिल सके।
इस घटना ने समाज के हर वर्ग को सोचने पर मजबूर किया है कि हमें किसानों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है। सही समय पर सहायता और संसाधन उपलब्ध कराकर हम उन्हें इस कठिनाई से निकाल सकते हैं।





















