झारखंड की कृषि अर्थव्यवस्था: एक महत्वपूर्ण पहलू
झारखंड, जो अपने घने जंगलों और खनिज संसाधनों के लिए जाना जाता है, में आज भी **70 प्रतिशत** से अधिक लोग कृषि पर निर्भर हैं। इस राज्य की **कृषि अर्थव्यवस्था** में कृषि का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यहां की लगभग **80 प्रतिशत** जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है और उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि और उससे संबंधित व्यवसाय हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में लगभग **38 लाख** किसान कृषि कार्य में संलग्न हैं, जिनमें से **72 प्रतिशत** छोटे या सीमांत किसान हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य में लगभग **44.36 लाख** कृषक मजदूर भी हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़े कार्यों में लगे हुए हैं।
कृषि का विकास और बजट में वृद्धि
झारखंड इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 के आंकड़ों के अनुसार, कृषि और संबद्ध क्षेत्र का राज्य के **सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी)** में योगदान लगभग **11.6 प्रतिशत** है। पहले जहां कृषि विभाग का बजट **300 से 400 करोड़** रुपये के बीच था, वहीं अब यह बढ़कर **4 हजार करोड़** रुपये तक पहुंच चुका है। राज्य गठन के बाद से कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों में निरंतर वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए, झारखंड में धान और अन्य अनाजों का उत्पादन **35 लाख टन** से बढ़कर अब **74 लाख टन** के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच चुका है।
सिंचाई की कमी: एक गंभीर चुनौती
हालांकि, यह भी एक सच्चाई है कि झारखंड में अलग राज्य बनने के बाद से **25 वर्षों** में हर खेत तक पानी पहुंचाने का सपना पूरा नहीं हो पाया है। इसके परिणामस्वरूप, यहां की अधिकांश भूमि पर केवल एक फसल के रूप में धान की खेती की जाती है। वर्तमान में, राज्य की कुल कृषि योग्य भूमि का लगभग **85-88 प्रतिशत** क्षेत्र वर्षाजल पर आधारित खेती करता है, जबकि केवल **15 प्रतिशत** खेतों में ही सिंचाई की व्यवस्था की जा सकी है।
मछली उत्पादन में वृद्धि
झारखंड में मछली का वार्षिक उत्पादन **3.63 लाख मीट्रिक टन** तक पहुंच चुका है। यह राज्य की कुल मछली आवश्यकता का **95 प्रतिशत** स्थानीय उत्पादन से पूरा करने में सक्षम है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत झारखंड में मछुआरों को प्रशिक्षण, तालाब निर्माण, बीज वितरण और आधुनिक मत्स्य पालन तकनीक के लिए सहायता दी जा रही है। राज्य की मत्स्य नीति में मत्स्यपालन को ग्रामीण रोजगार और आय का स्रोत बनाने पर जोर दिया गया है।
धान उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि
झारखंड में धान उत्पादन में निरंतर वृद्धि हो रही है। अलग झारखंड राज्य बनने के समय धान की खेती **10 लाख हेक्टेयर** से भी कम भूमि में होती थी, जो अब बढ़कर **17.63 लाख हेक्टेयर** हो गई है। पिछले एक दशक में धान की खेती का रकबा **2.94 लाख हेक्टेयर** बढ़ा है। धान के उत्पादन में 2001 से लेकर अब तक की तुलना की जाए, तो यह लगभग **दोगुना** हो गया है। वर्ष **2001** में राज्य में **27.32 लाख टन** धान का उत्पादन हुआ था, जबकि **2021-22** में यह रिकॉर्ड **53.65 लाख टन** तक पहुंच गया।
बागवानी का नया चलन
झारखंड में बागवानी का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है। अलग राज्य बनने के समय में बागवानी का कोई विशेष क्षेत्र नहीं था, लेकिन अब **5 लाख हेक्टेयर** भूखंड पर उद्यान लगाए जा रहे हैं। इससे न केवल कृषि क्षेत्र में विविधता आई है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल रही है। पहले जहां सिंचाई की व्यवस्था न के बराबर थी, अब **4.61 लाख हेक्टेयर** भूमि पर सिंचाई की जा सकती है।
लाह और तसर उत्पादन में अग्रणी झारखंड
झारखंड देश में लाह और तसर उत्पादन में अग्रणी है। यहां पर **70 प्रतिशत** लाह का उत्पादन होता है। अनुमान के अनुसार, झारखंड में लगभग **15 हजार टन** लाह का उत्पादन होता है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ग्रामीणों के लिए भी रोजगार का एक प्रमुख स्रोत बन चुका है।
निष्कर्ष
झारखंड की कृषि अर्थव्यवस्था आज भी **38 लाख हेक्टेयर** कृषि भूमि पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से आधारित है, जो **80 प्रतिशत** ग्रामीणों को भरण-पोषण प्रदान करती है। हालांकि, राज्य के लिए सिंचाई की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, लेकिन धान उत्पादन में हुई वृद्धि और मछली उत्पादन में हुई प्रगति राज्य की कृषि संभावनाओं को उजागर करती है। आने वाले समय में यदि सिंचाई की व्यवस्था में सुधार किया जाए और नई तकनीकों को अपनाया जाए, तो झारखंड की कृषि अर्थव्यवस्था और भी मजबूत हो सकती है।






















