छक्का कहने पर हुई मारपीट: आइशा की आपबीती
छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले की सरोना में एक तृतीय लिंग समुदाय की महिला आइशा ने अपने साथ हुई भद्दी घटना का जिक्र किया है। उन्होंने दैनिक भास्कर से बातचीत करते हुए बताया कि साल में एक बार अपने परिवार से मिलने के लिए गांव आई थीं, लेकिन इस दौरान उन्हें भद्दे कमेंट्स का सामना करना पड़ा। आइशा के अनुसार, गांव के कुछ लड़कों ने उन्हें छेड़ा और असहनीय बातें कहीं।
गांव में भद्दे कमेंट्स का सामना
आइशा ने बताया, “मैं सब सहती रही, लेकिन जब मेले से लौटते समय कुछ लोगों ने मुझे ‘छक्का’ कहकर बुलाया, तो मैंने पलटकर जवाब दिया। इसके बाद उन लोगों ने मुझ पर और मेरे दोस्त पर हमला कर दिया। यह सब सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। मैं थर्ड जेंडर (किन्नर) हूं, इसमें मेरा क्या कसूर?”
आइशा, जो कि मूल रूप से बालोद जिले के डौंडी ब्लॉक के ग्राम ठेमाबुजुर्ग की रहने वाली हैं, ने अपनी आपबीती साझा करते हुए कहा कि 12वीं तक गांव में पढ़ाई करने के बाद, उन्होंने अपने जैसे अन्य लोगों के साथ सरोना के गरिमा गृह में जाने का निर्णय लिया। वह 2021 से वहीं रह रही हैं।
मारपीट की घटना का संक्षिप्त विवरण
27 अक्टूबर को आइशा अपने दोस्त पवित्रा के साथ ठेमाबुजुर्ग में मेला घूम रही थीं। इस दौरान मंदिर के पास कुछ युवकों ने गंदे शब्दों का प्रयोग करते हुए उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। उन्होंने इस बात को नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन शाम को जब वे दशराज दुकान के पास पहुंचे, तो गांव के महेश पटेल, जीवन नेताम और गोपी नेताम ने उन पर हमला किया।
आइशा ने बताया, “जब मैंने और मेरे दोस्त ने उनका विरोध किया, तो उन युवकों ने हमें गालियाँ देना शुरू कर दिया और कहा कि ‘छक्का, यहां क्या करने आए हो?’ इसके बाद उन्होंने मुझ पर और मेरे दोस्त पर हमला कर दिया। मुझे सिर में चोट आई, जबकि मेरे दोस्त को माथे पर चोट लगी।” जब आइशा के परिजनों को इस घटना की जानकारी मिली, तो वे तुरंत मौके पर पहुंचे और दोनों को वहां से ले गए। इसके बाद डौंडी थाने में शिकायत दर्ज कराई गई।
आइशा का संघर्ष और समाज की असलियत
आइशा ने बताया कि उन्होंने 12वीं तक गांव में रहकर पढ़ाई की है। इस दौरान उन्हें लोगों के तानों का सामना करना पड़ा। सामाजिक भेदभाव और असमानता के कारण उन्होंने 2021 में अपने गांव को छोड़ने का निर्णय लिया। अब वह गरिमा गृह में रहकर अपने समुदाय के लिए एक मिसाल बन रही हैं और बालको, कोरबा में सुरक्षा का कार्य जिम्मेदारी से संभाल रही हैं।
आइशा का कहना है, “संविधान में हमारे लिए सम्मान और अधिकार की बातें लिखी गई हैं, लेकिन असल जिंदगी में ये सभी दावे खोखले हैं। हम आज भी समाज में अपने सम्मान के साथ जीने का अधिकार ढूंढ रहे हैं।” उनके इस बयान ने समाज में तृतीय लिंग समुदाय के प्रति फैली भेदभाव की सोच को उजागर किया है।
पुलिस का कार्रवाई पर बयान
इस मामले पर डौंडी थाने की टीआई उमा ठाकुर ने कहा, “शिकायत के आधार पर हम मामले को गंभीरता से ले रहे हैं। बीएनएस की धारा 115(2), 296, 3(5) और 351(3) के तहत मामला दर्ज किया गया है। आगे की कार्रवाई जारी है।” यह बयान इस बात का संकेत करता है कि पुलिस मामले की गंभीरता को समझते हुए उचित कार्रवाई कर रही है।
समाज में बदलाव की आवश्यकता
आइशा की कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरी तृतीय लिंग समुदाय की है, जो समाज में सम्मान और अधिकार की तलाश में हैं। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि समाज में भेदभाव और असमानता को समाप्त करने की दिशा में हमें और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। आइशा जैसे लोग बदलाव की प्रतीक हैं और उनकी आवाज़ को सुनना हमारे लिए महत्वपूर्ण है।
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि समाज में तृतीय लिंग समुदाय के प्रति मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। आइशा की हिम्मत और संघर्ष हमें प्रेरित करते हैं कि हम सभी को एक समान सम्मान और अधिकार मिलना चाहिए।






















