दुर्ग में पिता को नाबालिग बेटी से दुष्कर्म करने के मामले में 20 साल की सजा
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में एक नाबालिग सौतेली बेटी के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में आरोपी पिता को न्यायालय ने 20 साल की सजा सुनाई है। इस मामले में अदालत ने आरोपी पर 1 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया है। यदि आरोपी जुर्माना नहीं भरता है, तो उसे एक और साल की सजा भुगतनी पड़ेगी। यह मामला सुपेला थाना क्षेत्र का है, जहाँ पर एक खौफनाक घटना घटित हुई थी।
मां की शिकायत पर खुला मामला
जानकारी के अनुसार, 31 जुलाई 2024 को पीड़िता की मां ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। मां ने बताया कि वह अपनी तीन बेटियों के साथ रहती है और वारदात वाले दिन वह अपने बच्चों को घर पर छोड़कर काम पर गई थी। जब वह दोपहर को घर लौटी, तब उसे अपनी बड़ी बेटी के साथ हुई घटना की जानकारी मिली। यह घटना एक बार फिर से समाज में परिवारिक संरचना और सुरक्षा के मुद्दों पर सवाल उठाती है।
छोटी बेटी ने दी जानकारी
इस मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब पीड़िता की छोटी बेटी ने अपनी मां को बताया कि उसके पिता, जीतू पटेल उर्फ जितेंद्र, ने उसकी बड़ी बहन के साथ दुष्कर्म किया है। उसने बताया कि पिता ने अपनी बेटी को दूसरे कमरे में ले जाकर जबरदस्ती की और जब उसने विरोध किया, तो उसने उसके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। इस दरिंदगी के बाद पिता मौके से फरार हो गया।
पुलिस कार्रवाई और न्याय की प्रक्रिया
पीड़िता की मां द्वारा दी गई शिकायत के बाद, पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी पिता के खिलाफ मामला दर्ज किया और उसे गिरफ्तार कर लिया। इस मामले की सुनवाई करते हुए, मंगलवार को अपर सत्र न्यायाधीश चतुर्थ एफटीसी अनीश दुबे की अदालत ने आरोपी को लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत 20 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई। यह निर्णय न केवल पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में ऐसे अपराधों के प्रति एक कड़ा संदेश भी है।
पीड़िता के पुनर्वास के लिए निर्देश
अदालत ने इस मामले में पीड़िता के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार को 5 लाख रुपए की राशि प्रदान करने का भी निर्देश दिया है। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय केवल सजा नहीं देता, बल्कि पीड़िता के भविष्य की सुरक्षा और पुनर्वास की दिशा में भी कदम उठाता है। न्यायालय का यह निर्णय न केवल पीड़िता को सहारा देगा, बल्कि समाज में ऐसे अपराधों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होगा।
समाज में जागरूकता की आवश्यकता
इस प्रकार की घटनाएं समाज में गंभीर चिंताओं को जन्म देती हैं। न केवल यह घटना एक पिता द्वारा अपनी बेटी के प्रति किए गए अपराध को दर्शाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि हमें अपनी पारिवारिक संरचना में और अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। माता-पिता को अपने बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए और उन्हें अपने बच्चों के साथ संवाद करने की आवश्यकता है ताकि वे किसी भी प्रकार के खतरे से अवगत रह सकें।
अंत में, यह सुनिश्चित करना हमारे समाज की जिम्मेदारी है कि हम बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के प्रति सजग रहें। न्यायपालिका का यह फैसला एक सकारात्मक कदम है, लेकिन हमें वास्तविक बदलाव लाने के लिए और भी प्रयास करने की आवश्यकता है।























