इंदौर में रिश्वत लेते पकड़े गए निलंबित बाबू पर कार्यवाही की तैयारी
इंदौर के एक सरकारी कार्यालय में कार्यरत निलंबित बाबू नरेंद्र नरवरिया की रिश्वत लेने की मामले में जिला प्रशासन ने इंटरनल जांच कराने का निर्णय लिया है। कलेक्टर शिवम वर्मा ने बुधवार को इस मामले की पुष्टि करते हुए कहा कि बाबू पर नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। यह मामला तब प्रकाश में आया जब लोकायुक्त की ट्रैप टीम ने मंगलवार को उसे 50 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया।
कलेक्टर ने स्पष्ट किया कि बाबू नरवरिया निलंबित हैं और उन्हें दूसरी जगह अटैच किया गया था। इसके बावजूद वह कार्यालय में मौजूद थे, जो कि जांच का एक महत्वपूर्ण बिंदु है। कलेक्टर वर्मा ने कहा, “हम इस मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं। बाबू के बयान और लोकायुक्त से प्राप्त पत्र के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।” यह स्पष्ट है कि सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए जा रहे हैं।
इस मामले की पृष्ठभूमि
इसके पीछे की कहानी में एक आवेदक, एडवोकेट कृष्ण कुमार डांगी शामिल हैं, जिन्होंने शिकायत दर्ज कराई थी। डांगी ने बताया कि उनकी विधवा बुआ, भगवंती बाई, जो ग्राम खराडीया की निवासी हैं, के जमीन का नामांतरण कराने के लिए बाबू नरवरिया ने नायब तहसीलदार दयाराम निगम के साथ मिलकर 50 हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी। जब इस शिकायत की जांच की गई, तो यह सही पाई गई।
मंगलवार को, लोकायुक्त की ट्रैप टीम ने योजना के तहत बाबू नरवरिया को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा। डांगी ने 50 हजार रुपए की रिश्वत लेकर तहसील कार्यालय में प्रवेश किया, जहां नरवरिया ने उसे अपने टेबल की दराज में रखने के लिए कहा। जैसे ही रिश्वत की राशि रखी गई, ट्रैप दल ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को पकड़ लिया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्यवाही
नरवरिया के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण संशोधन अधिनियम 2018 की धारा 7 और 13(1) के तहत कार्रवाई की गई। इस दौरान नायब तहसीलदार मौके पर उपस्थित नहीं थे, जो कि जांच के संदर्भ में एक और जटिलता पैदा करता है। ट्रैप दल में शामिल अधिकारियों में डीसीपी सुनील तालाना, इंस्पेक्टर आशुतोष मिठास, सब-इंस्पेक्टर रहीम खान, और अन्य शामिल थे।
यह घटना इंदौर में सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाए गए कदमों का एक उदाहरण है। कलेक्टर शिवम वर्मा ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और ऐसे मामलों में कोई भी अधिकारी बच नहीं पाएगा। यह घटना न केवल स्थानीय प्रशासन के लिए एक चेतावनी है, बल्कि राज्य के अन्य हिस्सों के लिए भी एक संदेश है कि भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता
इस प्रकार की घटनाएं समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को उजागर करती हैं। जनता को चाहिए कि वे ऐसे मामलों की रिपोर्ट करें और प्रशासन को सहयोग दें ताकि भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सके। स्थानीय प्रशासन और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए यह आवश्यक है कि वे इस प्रकार की शिकायतों को गंभीरता से लें और त्वरित कार्रवाई करें।
इस मामले ने इंदौर में प्रशासनिक तंत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही को भी चुनौती दी है। जनता की इस मुद्दे पर नजर बनी रहेगी और सभी की अपेक्षा है कि इस मामले में त्वरित और उचित न्याय मिले।
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ यह कदम न केवल इंदौर के लिए, बल्कि पूरे मध्यप्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह दर्शाता है कि सरकारी तंत्र में सुधार की आवश्यकता है और इसके लिए सभी को एकजुट होकर काम करना होगा।
इस मामले में आगे की कार्रवाई और जांच की प्रक्रिया को लेकर प्रशासन की ओर से लगातार अपडेट दिए जाएंगे, जिससे कि जनता को पूरी जानकारी मिल सके।